Monday, 31 December 2012

ब्रह्मणो कि धार्मिक दहषद : अब तो जागो भाईयो


ब्राह्मण जात के लोगो ने पिछड़ी जातियो को पुन्य कमाकर स्वर्ग भेजने का सपना दिखाकर कर्मकांड करवाते है और इस कर्मकांड के चक्कर मे लाखो पिछड़ी जातियो को मौत के घाट उतारते है ,कल बिहार मे ब्रह्मणो ने कई पिछड़ी जात के लोगो को अंधविस्वास के चक्कर मे फाँस कर मार डाला ,नीचे कुछ बड़े बड़े नर-संहार की लिस्ट से रहा हू 
1) 20 अक्टूबर 2012: मध्यप्रदेश के सीहोर जिले में स्थित सलकनपुर देवी मंदिर परिसर में मची भगदड़ से दो लोगों की मौत और 32 घायल।

2) 24 सितंबर 2012: झारखंड़ में देवघर जिले के सत्संग नगर स्थित एक आश्रम में भगदड़ से 12 लोगों की मौत और 20 घायल ।

3) 23 सितंबर 2012: उत्तर प्रदेश के मथुरा में स्थित राधा रानी मंदिर में भगदड़ से तीन लोगों की मौत।

4)2 सितंबर 2012: बिहार के नालंदा में राजगीर कुंड में स्नान के समय मची भगदड़ से दो लोगों की मौत।

5) 19 फरवरी, 2012: गुजरात के जूनागढ़ जिले में भगवान मंदिर के निकट महाशिवरात्रि मेले में भगदड़ से छह लोगों की मौत और 12 अन्य घायल।

6)14 जनवरी, 2012: मध्यप्रदेश में जावरा के निकट हुसैन टेकरी में अंगारों पर चलने की भगदड़ में दम घुटने से 12 श्रद्घालुओं की मौत।

7) 8 नवंबर, 2011: हरिद्वार के लालजीवाला क्षेत्र में गायत्री परिवार के संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के जन्मशताब्दी समारोह यज्ञ के दौरान भगदड़ में 20 लोगों की मौत और 70 लोग घायल।

8) 14 जनवरी, 2011: केरल के सबरीमाला के अयप्पा मंदिर के निकट भगदड़, 104 की मौत।

9) 4 जनवरी, 2011: केरल के सबरीमाला में अयप्पा मंदिर निकट भगदड, एक मौत और 20 घायल।

10)16 अक्टूबर, 2010: बिहार, बांका के तिलडीहा दुर्गा मंदिर में नवरात्र के दौरान भगदड़, 10 की मौत।

11- 14 अप्रैल, 2010: हरिद्वार में कुंभ के मुख्य स्नान के मौके पर भगदड़, सात की मौत और 20 घायल।

12) 4 मार्च, 2010: प्रतापगढ़, मनगढ़ स्थित कृपालु जी महाराज के आश्रम में भंडारे के दौरान भगदड़, 63 की मौत।

13) 14 जनवरी, 2010: प. बंगाल के चौबीस परगना स्थित गंगासागर मेले में भगदड़, सात मरे।

14) 3 सितंबर, 2009: बिहार में जहानाबाद के नजदीक एक मंदिर में भगदड़, तीन मरे और 25 घायल।

15) 22 जुलाई, 2009: वाराणसी के दशाश्वमेध और शीतला घाट पर भगदड़, एक की मौत 13 घायल।

16- 30 सितंबर, 2008: जोधपुर के मेहरानगढ़ स्थित चामुंडादेवी मंदिर में भगदड़, 224 की मौत।

17) 3 अगस्त, 2008: हिमाचल के बिलासपुर स्थित नैनादेवी मंदिर में भगदड़, 162 की मौत।

18- 4 जुलाई, 2008: उड़ीसा, पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर के बाहर रथयात्रा के दौरान भगदड़, छह की मौत।

19) 26 मार्च, 2008: मध्यप्रदेश के करीला में सीता मंदिर में भगदड़, 8 की मौत और 12 घायल।

20) 14 अक्टूबर, 2007: गुजरात, पंचमहल में पावागढ़ पहाड़ी स्थित महाकाली मंदिर में भगदड़, 11 की मौत।

21) 25 जनवरी, 2005: महाराष्ट्र में सतारा जिले में स्थित मंधारा देवी में भगदड़, 340 की मौत।

22) 27 अगस्त, 2003: नासिक में कुंभ मेले के दौरान बैरिकेड टूटने के बाद भगदड़, 41 मरे।

23) 14 जनवरी, 1999: केरल के प्रसिद्घ सबरीमाला मंदिर में भगदड़, 60 की मौत।

24) 1986: हरिद्वार में भगदड़ में 50 श्रद्घालुओं की मौत।

25) 1984: हरिद्वार में हुई भगदड़ में 200 लोग मारे गए।

26)1954: इलाहाबाद कुंभ मेले के दौरान मची भगदड़ में 800 लोगों की मौत। ,,,,,,,,,और कितने नर-संहार की तो जानकारी नही हो पाई .
 यह है  ब्रह्मणो कि धार्मिक दहषद : अब तो जागो भाईयो ..

Monday, 17 December 2012

अजब दुनिया कि गजब कहानी ...



दुनिया कितनी अजीब है.लोगोंको ये मत  करो बोलो, ओ वही  पहिले करेंगे ..सच बोलो वह झुठ मानेंगे ,झुठ बोलो सच मानेंगे  .
बुद्ध हमेशा कहते थे कि मेरी पूजा मत करो ,मूर्ती मत बनावो लोगोंने मुर्तीया हि  मुर्तीया बनाई ,फिर पहाड हो या पत्थर.  
बुद्ध हो या कोई भगवान! मुर्तीया इन्सान ने हि बनाई ओर ओ खुद उसके पैर छूता है! हैं  न अजब !
लोग मंदिरो में  जाते है !भगवान कि तरफ हात जोडते है ओर पिछे  मुडकर बार बार  देखते है! कि उनकी चप्पल ,जुता कोई चुरकार लेके न जाय 
! अब ये नमस्कार भगवान को पोहचता है चप्पल ,जुतो को .! मेरे खयाल से जुतो को ! क्युकी जहा नजर वाह नमस्कार !  है  न अजीब दुनिया ! 
दुनिया में  घुमते समय लोग खुद को  कुछ अलग दिखाना चाहते है ,जो वह होते नही ! इसलिये तो कहा गया है  कि लोगोंके अस्लियत का पता बाथरूम में चालता है !
 अरे लोगोंको बोलो तुम्हारे गुरु कोंन ,बोलेंगे बुद्ध ! पुछो उन्होने क्या बताया ! फिर लोग बोलेंगे " बुद्ध ने कहा कोई किसीका गुरु नही होता -अतः दीप भव(खुद प्रकशित बनो )   !

हैं  न अजब दुनिया 
 जितना उनको सुधार ते जाव उताणा बिघडे गे !

इसीलिये तो कबीरजी कहेते थे 
"यक आजूबा देखा मैने ,मुर्दा  रोटी खाय ! समझाने से समझत नाय लात पडे  सो चील्लाय !"
जब इस मुर्दा दुनिया पे पडेगी तब समझ में  आयेगा ! 

Saturday, 18 August 2012

भाऊबीज :भटांचे अपमानास्पद कृत्य..


भटांचे थोर इतिहास संशोधक वी .का राजवाडे यांनी भारतीय विवाह संस्थेचा इतिहास या पुस्तकात यम आणि यमी  या  ब्राह्मण कुटुंबातील बहिण भावाचा संवाद दिला आहे .ते अपमानास्पद कृत्य मी नाईलाजास्तव उघड करत आहे .
यमी आपल्या भावाला म्हणते कि " हे भावा मला तुझ्यासारखा शूर मुलगा होवू दे .तुझ्ये बीज माझ्या योनीत टाक " यम म्हणतो असे कुठे असते का ? भाऊ कुठे बहिणीशी समागम करतो का ?
यमीचे  यम ऐकत  नाही म्हणून यमी त्याच्या कामुक  भावना उत्तेजित करण्यासाठी त्याला म्हणजे स्वतःच्या भावाला उटणे लावून अंघोळ घालते ,त्याच्या अंगावर अत्तर शिम्पडते .यातून त्याच्या कामुक भावना उत्तेजित होतात आणि मग तो यम  यामिच्या योनीत आपले  बीज टाकतो . " हे अपमानास्पद कृत्य ब्राह्मणांनी सन म्हणून पुढे आणले ....यात आमचा मराठा मूलनिवासी बहुजन समाज फसला .अडकला .
 त्याच बरोबर राजवाडे म्हणतात .
1)वासीस्ठाची मुलगी शतरूपा त्याच्याशी पती म्हणून राहिली .(हरिवंश अध्याय 2)
 २) दक्ष  याने स्व भगिनी (बहिण ) दक्षा हिच्याशी विवाह केला .ब्रह्म   देवाचा  नातू कश्यप याने आपल्या १३ चुलत बहिणीशी समागम केला .ब्रह्मदेवाचा पुत्र धर्म याने आपल्या १० पुतण्या शी समागम केला .(अर्जुन उर्वशी संवाद ,महाभारत आदि पर्व ४५,४६ )
३) ब्रह्मदेवाचा पुत्र दक्ष याने आपली मुलगी (सरस्वती ) ब्रह्मदेवाला दिली तिच्या पासून नारद झाला .(हरिवंश अध्याय ३ पृष्ठ 8)
एवढे आपले डोके सरळ करायला पुरेसे  आहे असे मला वाटते ,.
निषेध  असो या ब्राह्मणी संस्कृतीचा आणि ब्राह्मणी धर्माचा .

Thursday, 16 August 2012

आझादी का आंदोलन ,आझादी का आंदोलन नाही था,बल्की वह आर्य युरेशिअन ब्रह्मणो के आझादी का आंदोलन था !

जय जिजाऊ : भारत के मूलनिवासी बहुजन लोग विदेशी बामनो के 5000 सालो से गुलाम है. जब जब हमारे लोगो ने बामनो की गुलामी के खिलाफ विद्रोह तेज किया, तब तब बामनो ने उनकी मदद के लिए अन्य विदेशियों को भारत पर आक्रमण का न्योता दिया. उसी के तहत, भारत पर समय समय पर हुन, कुषाण, शक, पोर्तुगीस, मुग़ल, डच, ब्रिटिश इन विदेशियोने आक्रमण करके हमे गुलाम बनाया. बामनो ने उनका साथ दिया और हमारी गुलामी बरक़रार रखी.

बाबर को समज में आया की भारत के वास्तविक शासक बामन लोग है. इसलिए उसने "बाबरनामा" में उसके वंशजो को सन्देश दिया की, " भारत के वास्तविक शासक बामन लोग है; इसलिए अगर आपको भारत पर दीर्घकाल शासन करना है तो बामनो को साथ लेकर शासन करना होगा". उसी के तहत मुघलो ने बामनो को उनके शासन में ४०% भागीदारी (reservation ) दिया. अकबर के ९ में से ९ रत्न बामन ही थे! इसलिए ६५० साल के मुघलो के शासन के खिलाफ बामनो ने कभी भी स्वतंत्रता युद्ध

 नहीं छेडा था.

मुघलो की तरह ब्रिटिशो ने भी समजा की यहाँ के वास्तविक शासक बामन ही है. बामनो ने मुघलो की तरह ब्रिटिश शासन में ४०% भागीदारी (reservation ) के लिए और ब्रिटिशो को समजाने के लिए १८८५ में " कांग्रेस" की स्थापना की. इसी भागीदारी को कांग्रेस के बामन लोग और तिलक "स्वराज्य" कहते थे. लेकिन ब्रिटिश लोग समतावादी थे. उन्होंने बामनो को शासन में ४०% भागीदारी (reservation ) देने से मना किया. बामनो ने उन्हें बताया की हम तुम्हारी तरह ही विदेशी है, लेकिन उन्होंने बामनो का कुछ नहीं सुना.

१८८५ से १९२९ तक बामन लोग ब्रिटिशो को कांग्रेस के माध्यम से समजाते रहे. लेकिन ब्रिटिशो ने बामनो का कुछ सुनने की बजाय, बामनवाद ख़त्म करना शुरू किया और मूलनिवासी बहुजनो को न्याय देना जारी रखा. इससे बामन घबरा गए. उन्होंने सोचा की अगर ऐसा ही चलता रहेगा तो जल्द ही हमारी भारत की सत्ता चली जाएगी. इसलिए बामनो ने ब्रिटिशो को भगाने के लिए गाँधी के नेतृत्व में कहा "चले जाओ". मतलब, यह "बामनो के आज़ादी" का आन्दोलन था. इसी बामनो के आन्दोलन के तहत, १५ अगस्त १९४७ को बामन लोग ब्रिटिशो की गुलामी से आजाद हुए. यह हमारी आज़ादी नहीं थी. इसलिए अन्नाभाऊ साठे ने कहा, "यह आज़ादी जूठी है."

हम ( मूलनिवासी बहुजन) अभी भी आजाद नहीं है; हम बामनो के गुलाम है. इसलिए हमारी हजारो समश्या है. हमारी आज़ादी का आन्दोलन १८४८ में महात्मा फुले ने शुरू किया था. उसको शाहू महाराज और बाबासाहेब आंबेडकर ने आगे बढाया था. इस आन्दोलन को और आगे बढ़ना होगा . अगर हमे हमारी हजारो समस्याओ से छुटकारा पाना है, तो पहले हमे हमारी "आज़ादी" हासिल करनी होगी.
 
आझादी का आंदोलन ,आझादी का आंदोलन नाही था,बल्की वह आर्य युरेशिअन ब्रह्मणो के आझादी का आंदोलन था !  

Sunday, 5 August 2012

धनगर-मराठा वाद पेटविणारे सुपारी बहाद्दर कोण?

शिवश्री प्रदीप इंगोले आपल्या शब्दात म्हणतात :
"

धनगर-मराठा वाद पेटविणारे सुपारी बहाद्दर कोण?

धनगर-मराठा वाद पेटविणारे सुपारी बहाद्दर कोण?
वाघ्याला हटवण्याची संभाजी ब्रिगेडची कृती फुले-शाहू-आंबेडकरवादास घातक हा एका नवोदित लेखकाचा लेख वाचला त्यात जे प्रश्न लेखकाने जाणून बुजून विचारले त्याचे उत्तर एक शिव
इतिहास अभ्यासक मराठा म्हणून देणे कार्त्याव्या वाटले म्हणून हा लेख प्रपंच. १ ऑगस्ट २०१२ रोजी संभाजी ब्रिगेडच्या ४०० कार्यकर्त्यांनी सकाळी ९ ते १० च्या सुमारास शिव सकाळी वाघ्याचा पुतळा फोडला...
आता काही जातीयवादी वृत्तपत्रांनी असा ओरड सुरु केलाय कि धुक्याचा फायदा घेऊन ब्रिगेडच्या कार्यकर्त्यांनी पुतळा काढला पण त्यांना एवढी तरी अक्कल पाहिजे कि जर ब्रिगेड ला हे काम अंधारातच करायचे असते तर त्यांनी रात्रीच हे काम केल असत त्यासाठी सकाळच्या धुक्याची कशाला कशाला वाट बघितली असती?असो विषयांतर सोडून मूळ मुद्द्याकडे येऊ.लेखकाने या लेखात जाणून बुजून काही प्रश्न उपस्थित केले आहेत ज्याची उत्तरे माझ्या माहिती नुसार लेखकाला एक समतावादी कार्यकर्ता म्हटल्यावर चांगलीच माहिती पाहिजे.लेखक असे म्हणतात कि प्रश्न पुतळ्याचा नाही तर तो काढण्याच्या पद्धतीचा आहे.म्हणजे याचा अर्थ लेखकाला पण वाघ्या हे काल्पनिक पात्र आहे हे मान्य आहे.मग जर प्रश्न फक्त काढण्याच्या पद्धतीचा असेल तर मग ह्या कृतीने धनगरांच्या अस्मिता कशा दुखावतील?काही स्वंयघोषित इतिहासकारांचे असे मत आहे कि ती समाधी शिवरायांच्या महाराणीची नाही वादासाठी हे मान्य करूयात कि ती समाधी शिवरायांच्या महाराणीची नाही पण ती समाधी दुसर्या कुणीतरी शिवरायांच्या जवळील व्यक्तीचीच आहे एवढ तर स्पष्ट आहे कारण वाघ्या कुत्र्याची तर ती समाधी नाही कारण वाघ्या कुत्रा नावाच्या पत्राचाच जन्म १९३६ पूर्वी झाला नवता पण हि समाधी मात्र फार प्राचीन आहे.जेवा राष्ट्रपिता ज्योतीराव फुलेंनी रायगडावर जाऊन शिव्सामाधीचा शोध घेतला आणि शिवरायांवर प्रदीर्घ पोवाडा लिहिला त्यात महात्मा फुलेंनी वाघ्या कुत्र्याचा साधा नाम निर्देश देखील केला नाही याचा अर्थ एवढाच कि वाघ्या त्या काळीही जन्माला नव्हता आणि शिवसमाधी पुढे असलेली ती समाधी कुण्यातरी शिवरायांच्या जवळील व्यक्ती किंवा महाराणी यांची होती मग अश्या व्यक्तीच्या समाधीवर कुत्रा बसवणे कितपत योग्य आहे?धनगर समाजाची अस्मिता जर फक्त एक काल्पनिक विदेशी कुत्रा हटविल्याने दुखावली जात असेल तर तो विदेशी कुत्रा ज्या मराठ्यांच्या महाराणीच्या समाधीवर बसवला आहे त्या मराठ्यांच्या अस्मिता किती पटीने दुखावल्या जात असतील या गोष्टीचा विचार धनगर समाजाने केला पाहिजे.एक काल्पनिक विदेशी कुत्रा कुणाच्या अस्मितेचा विषयच कसा होऊ शकतो?लेखकाने लिहिलेली भाषा हि नरके व्हाया सोनवणी व्हाया रामटेके व्हाया लेखक हा दुराचा प्रवास करून येते हे स्पष्ट जाणवते.लेखकांनी ब्रिगेडला विरोध केला ह्याचा मला खेद वाटत नाही आणि लेखकाने आंधळे समर्थन करावे ह्या मताचा देखील मी नाही पण ज्यांच्या सांगण्यावरून लेखकांनी हा विरोध केला त्यांची प्रामाणिकता आणि कार्यशैली लेखकाने आधी जाणून घ्यावी.लेखक म्हणतो कि मराठा-धनगर वादाचे कारण नरके-सोनवणी नाहीत पण मराठा-धनगर वादाचे कारण हे दोघेच आहेत.ज्या जाणकारांनी वाघ्या कुत्रा हा धनगरच्या अस्मितेचा विषय बनवला तो ब्रीगेद्नी आंदोलन हाती घेतल्यावरच का बनवला?जर वाघ्या हा धनगर आणि महादेव जाणकारांची अस्मिता होती तर जाणकार याआधी रायगडावर वाघ्याच्या दर्शनासाठी कितीदा गेले ह्याचा विचार समस्त धनगर समाजानी करावा हा सर्व प्रकार धनगर आणि मराठा यांच्यात वाद पेटवण्यासाठी काही सुपारी खोरणी केला आहे त्यांनी ब्रिगेडच्या बदनामीची सुपारी घेतली आहे हेच यातून सिध्द होते.लेखक लेखात ज्या नरके सोनवणी रामटेके यांना निर्दोष ठरवत आहे त्यांचे विचार लेखकांनी नित समजून घ्यावेत.संजय सोनवणीनि आज वाघ्याच्या निषेधार्थ उपोषण केले आणि असे व्यक्तव्य केले कि ब्रिगेडवर बंदी घालण्यासाठी मी प्रयत्न करणार आहे सोनावानिनी एकदा जाहीर करावे कि असा कुठला दहशतवाद ब्रिगेडने केला ज्यामुळे त्यावर बंदी घाला अशी मागणी ते करतात.आणि जर त्यांना एवढाच जर दहशतवादी कृत्य आणि दहशतवादी संघटनेचा तिरस्कार येत असेल तर पुण्यात काल झालेल्या बॉम्ब स्फोटामागे हिंदुत्ववादी शक्तीचा हात आहे असे पोलिसांनी सांगितलाय मग उद्या संजय सोनवणी ह्या हिंदुत्ववादी संघटनेवर बंदी आणा म्हणून उपोषणाला बसणार आहेत का?या त्रय्तील रामटेके नावाच्या महाशयाला मी भेटलो आहे हा माणूस समस्त मराठा समाज आणि शिवराय यांचा देखील द्वेष्ट आहे आणि तो शिवरायांनी महाराणा डावलल व शिवराय मनुस्मृतीचे समर्थक होते अशा मताचा आहे.लेखक एक समतावादी कार्यकर्ता आहे याबद्दल मला संशय नाही पण रामटेके सारख्या व्यक्तीचे हे विचार लेखकाला मान्य आहेत का?दुसरा एक प्रश्न लेखक उपस्थित करतात कि शालिनीताई,शशिकांत पवार ह्या मराठा नेत्यांना मराठा म्हणून सौफ्ट कोर्नेर दिला जातो पण नरके सोनवणी ह्यांना का नाही? तर लेखकाला विनोद अनावृत नावाचा एक बुधिस्त लेखक माहित असेल ह्या लेखकाने शिवरायांच्या द्वेषापोटी शिवरायांवर गरळ ओकणारे लेखन केले आहे तरीही तो बहुजन असल्यामुळे ब्रिगेडने त्याला धारेवर धरले नाही तसेच रुप्राज संघावते ह्यांना पण ब्रिगेड ने बहुजन असल्यामुळे झुकते मापाच दिले ब्रिगेडला वाटले असते तर ह्या दोन्घाचा कधीच सुदर्शन झाला असता पण बहुजन असल्यामुळेच ब्रिगेडने त्यांना सौफ्त कोर्नेर दिले एवढे असूनही लेखक असे विधान करतात कि फक्त मराठ्यानच ब्रिगेड बहुजन म्हणून सौफ्त कोर्नेर देते.लेखक लेखाच्या शेवटी लिहितात कि दादू प्रकरणी १८ पगड जातींनी ब्रिगेडला मदत करून दादू हटविला याचा अर्थ १८ पगड जातीच्या लोकांचा दादुला विरोध होता मग नरके नावाच्या प्राण्याचे दादुला समर्थन होते त्याच नाराकेला लेखक निर्दोष कसे ठरवतात.
लेखक फक्त मराठ्यांकादुनच समाजास्याची अपेक्षा कशी करू शकतात जर धनगर समाजाने वाघ्याचा सविस्तर अभ्यास न करता कुण्या न जाणकाराच्या म्हणण्यानुसार वाघ्या कुत्र्याला जर अस्मितेचा विषय बनविला तर या महाराष्ट्रात फार मोठी दंगल घडू शकते आणि सुपारी बहाद्दरान हेच हवे आहे.कुत्र्याला अस्मिता बनवून धनगर समाजाला भादाकावानार्यानी हे पण लक्षात घ्यावे कि अस्मित मराठ्यांना पण असते आणि मराठे शिवरायांच्या बाबतीत बदनामी कधीच सहन करू शकणार नाहीत.आता सत्य तपासून समाजास्या दाखवण्याची गरज आहे जर धनगर समाजाने आक्रमकतेची भाषा केली तर पुढील परिणामांना मराठ्यांना दोष देण्याचा काम कुणी करू नये एवढीच जिजाऊ चरणी प्रार्थना......जय जिजाऊ जय शिवराय जय मल्हार

Wednesday, 1 August 2012

. ब्राह्मणी वाघ्या -ब्राह्मणी नीती

सत्य असत्याशी मन केले ग्वाही  ! मानियले नाही बहु मता !!
 नुकताच रायगडावरील वाघ्या कुत्राचे शिल्प आमच्या संभाजी ब्रिगेड च्या मावळ्यांनी काढले .त्यावर उलट सुलट चर्चा चालू झाली .
ज्याला त्याला, ज्याची त्याची बाजू मांडण्याची संधी आम्ही पूर्णपने  देत आहोत . आमची बाजू  अशी आहे कि .
आमचा विरोध ब्राह्मण, ब्राह्मणी संस्कृती आणि ब्राह्मणांनी कलेले काळे कारस्थाने याशिवाय कोणाला हि नाही .
धनगर समाजाला तर मुळीच नाही .आणि हो  राजकीय  नेत्यांनी सांगितलेल्या गोष्टी आम्ही सत्य मनात असू तर तो आमचा मूर्खपणा ठरेल .
सत्य आम्ही जाणले पाहिजे . मराठा लोक सुद्धा कुत्रा पूजनीय मानतात पण जिवंत . मेलेले ,अनेतिहासिक नव्हे .राम गणेश गडकरी या ब्राह्मणाच्या नाटकाशिवाय ज्याला कुठलाच पुरावा नाही त्या वाघ्याचा एवढा थाट कि तो चक्क शिवरायांच्या समाधीच्या शेजारी . म्हणजे शिवरायांची लायकी काय तर कुत्र्या बरोबर हे भटमान्य टिळकांचे कारस्थान . हे आम्ही जाणले पाहिजे .
राजर्षी शाहुजी महाराज यांनी आपली(चुलत ) बहिण होळकर घराण्यात दिल्याचा इतिहास आहे .शिवाय त्यांनी २५ मराठा -धनगर विवाह लावल्याची नोंद आहे .मग भांडण अंगावर ओढून घेणार्यांना हा इतिहास पुसता येणार नाही . बाकी आमचा एकच उद्देश हा  भारतीय मूलनिवासी बहुजन समाज ब्राह्मणांच्या सांस्कृतिक ,क्षेक्षणिक ,राजकीय,धार्मिक  गुलामीतून मुक्त करणे.राष्ट्रव्यापी जन आंदोलन उभे करणे .होय ..........

Tuesday, 31 July 2012

स्वतंत्र्याचा आम्हाला काही फायदा झाला का?

जय जिजाऊ :  ब्राह्मण कुठलीही गोस्ट करत असताना अत्यंत षड्यंत्र पूर्वक करतो .त्या मागे त्याचा काही न काही हेतू असतोच .
कॉंग्रेसी ब्राह्मणांची गम्मत बघा आदिवासींना खुश करण्या साठी व मते मिळवण्यासाठी  कश्मीरी पंडित नेहरू आदिवासींमध्ये जाऊन नाच (डान्स) करायचा .हाच धडा त्याची जायज संतान श्रीमती इंदिरा हिने सुद्धा गिरवला ह्याचे आमच्याकडे फोटोग्राफ आहेत.पुढे इंदिरा च्या नंतर राजीवने आपला पी ए ला विचारले कि आदिवासिंला खुश करण्यासाठी काय केले पाहिजे .त्यावर पी ए म्हणाला कि तुमचा अज्जा आदिवासींमध्ये जाऊन नाच करायचा .तुमची माय सुद्धा हेच करायची मग तुम्ही सुद्धा हेच करा.त्यावर राजीव म्हणाला पण मला तर नाचता यत नाही त्यावर पी ए म्हणाला तुम्हाला कुठे नाचायचे आहे .फक्त आदिवासींना नाचवायचे.पुढे राजीव सारखेच सोनिया सुद्धा आदिवासींमध्ये जाऊन नाचली.पण आदिवासी समाज मात्र जशास तसाच राहिला .स्वातंत्र्याचा आणि काश्मिरी भटांच्या नाचाचा आदिवासींना काहीच फायदा झाला नाही . आत्ता राहुल हुशार झाला त्याने नाचकाम सोडले .पण त्याच्यात पाकिस्तानचे राष्ट्रपिता M.K.गांधी ची आत्मा शिरली .त्यामुळे तो गांधीसारखे गरिबांच्या घरी जाऊन झोपाय लागला आणि मते मिळवाय लागला. तो गरिबांच्या घरी जेवतो पण जेवणाचा डब्बा मात्र सोबत घेवून जातो.आत्ता बघा असी असते ब्राह्मणी नीती .स्वतंत्र्याचा आम्हाला काही फायदा झाला का .म्हणून (राजमाता सोनिया गांधी ,राजकुमार राहुल गांधी ,राज कुमारी प्रियांका गांधी )
हि घराणे शाही मोडून काढा . कॉंग्रेस १ धोका हाय ! लात मारा मोका हाय !!

जय शिवराय

Monday, 16 July 2012

नामदेवे रचिला पाया ! तुका झालाशी कळस !!

या देशात कुठले हि कार्य  भटानशिवाय  होवूच  शकत नाही.असे भटांना वाटते .म्हणून त्यांचा कुठे न कुठे भट घुसवण्याचा धंदा चालूच असतो .असेच या देशात संत नामदेव यांनी भागवत अर्थात वारकरी धर्माची स्थापना केली होती .पण त्यांनी केलेल्या कार्याचे सर्व श्रेय ब्राह्मणांनी ज्ञानेश्वरानां तर दिलेच पण संत नामदे यांना देखील उपेक्षित ठेवले .
खरे पाहता संत  ज्ञानेश्वर हे  संत नामदेव यांच्या पेक्ष्या वयाने लहान होते .या बद्दल संत जनाबाई म्हणतात 
" नामदेव कीर्तन करी ! नाचे पांडुरंग !!
जनी म्हणे ज्ञानदेवा ! म्हणा अभंग !! "  कीर्तन करणारी व्यक्ती मोठी असते.अभंग म्हणणार्यान पेक्ष्या. म्हणून जनाबाई  ज्ञानेश्वरानां खडसावून सांगतात कि नामदेव कीर्तन करत आहेत. तुम्ही अभंग म्हणा .याचा अर्थ असा कि संत  ज्ञानेश्वर हे  संत नामदेव यांच्या पेक्ष्या वयाने लहान होते . पण भटांनी एक डाव टाकला . 
नामदेवे रचिला पाया ! तुका झालाशी कळस !! 
ह्या अभंगातला नामदेव हा शब्द काढून त्यांनी ज्ञानदेव  हा शब्द घातला .वास्तविक ज्ञानेश्वर यांचे नाव ज्ञानेश्वरच पण भटांनी ते घुसवंन्या साठी  ज्ञानदेव  केले .
आणि मग त्यांनी अभंग केला 
ज्ञानदेवे  रचिला पाया ! तुका झालाशी कळस !!   .....आमचे वारकरी बसले टाळ कुटत आणि हेच म्हणत .
बरे संत नामदेव यांना अख्खा भारत ओळखतो पण ज्ञानेश्वर यांचे महाराष्ट्रा बाहेर कार्यच मुळी शून्य .शिवाय ज्ञानेश्वरीत कुठेच पंढरपूरचा आणि विठ्ठलाचा उल्लेखच नाही .
पण संत नामदेव मात्र शब्दा शब्दाला विठ्ठलाचे महत्व सांगतात .संत नामदेव यांचा एवढा द्वेष का तर शिंपी जातीचे होते म्हणून ....आणि  ज्ञानेश्वर यांचा एवढा पुळका का तर ते ब्राह्मण होते म्हणून .
ज्या ब्राह्मणांनी ज्ञानेश्वरांना आयुष्यभर छळून फुटके खापर सुद्धा मिळू दिले नाही तेच ब्राह्मण आज त्यांच्या नावावर कोट्यावधी रुपये कमावत आहेत .
आता एकाच केले पाहिजे .
" तुका म्हणे ऐश्या नरा ! मोजुनी हनाव्या पैजारा !!"

Thursday, 5 July 2012

इस देश मे ब्रम्हणो कि अनियंत्रित सत्ता हि भ्रस्टाचार का मुल कारण हैं

इस देश मे ब्रम्हणो कि अनियंत्रित सत्ता हि भ्रस्टाचार का मुल कारण हैं
हली मे जो सरकार(अण्णा के ) द्वारा  भ्रस्टाचार डंका पिट रही हैं ! वास्तव मे वह आधा सच हैं !
अण्णा तो केवळ आर्थिक भ्रस्टाचार के उपर बखेडा खडा कर रहे हैं ! भ्रस्टाचार साधारणतः ५ प्रकार के होत हैं !
1) धार्मिक  भ्रस्टाचार :
                                इस देश मे अमरिका के अर्थव्यवस्था के दुगना और भारत के बजेट के आठगुणा जादा संपत्ती मंदिरो मे हैं !
                                 और यह मंदिर केवळ ब्रम्हणो के कबज्जे मे हैं !और यह संपती केवळ obc  भाईओ कि हैं !तो इस धार्मिक भ्रस्टाचार के उपर भी चर्चा होनी चाहिये !
२) सामाजिक भ्रस्टाचार:
                                      इस भ्रस्टाचार का मतलब होता हैं कि जाती व्यवस्था,वर्णव्यवस्था और गैरबराबरी को बढावा देणा ! यह काम इस देश में ब्रम्हणो के सिवा कोई नाही करता !
                                      तो यह मुद्दा कोण उठायेगा !
३ ) राजकीय भ्रस्टाचार :
                                         चारा घोटाळा ,स्पेक्ट्रम घोटाळा ,राष्ट्रकुट  घोटाळा ,यह सब राजकीय भ्रस्टाचार हैं ! इसपर ब्राह्मण मिडिया कभी चर्चा नाही करता !
४) संविधान का  भ्रस्टाचार 
                                          संविधान के कलम बदलकर  मूलनिवासीयो को  उनके हक अधिकार से वंचित करणा .ब्रम्हणो द्वारा मानुस्मुर्ती लागू करणा !हिंदुस्थान जैंसा गैर कानुनी शब्द लागू करणा यह                                                              
                                         संविधान का  भ्रस्टाचार होता हैं ! इसपर भी कभी ब्राम्हणी सरकार चर्चा नाही होनी देती !
 ५) आर्थिक भ्रस्टाचार :
                                       ग्राम पंचायत से लेकर राष्ट्रपती तक जो  पैसो का भ्रस्टाचार होता हैं ! उसे  आर्थिक भ्रस्टाचार कहते हैं ! इके उपर अण्णा नाच राहा हैं !
अब देखो इस देश कि धर्म सत्ता ,न्यायपालिका ,कार्यपालिका ,मेडिया , और प्रचार प्रसार माध्यम यह सारा का सारा ब्रम्हणो के कब्जे में हैं ! तो  भ्रस्टाचार को बढावा देणे का काम भी ब्राम्हण हि कर र्राहे हैं !तो इस देश मे ब्रम्हणो कि अनियंत्रित सत्ता हि भ्रस्टाचार का मुल कारण हैं!

Thursday, 21 June 2012

बाळनतिनीच्या खोलीपासून ते मसनवाट्यातील सरना पर्यंत ब्राह्मणांचा कब्ज्या

भारतात बाळनतिनीच्या खोलीपासून ते मसनवाट्यातील सरना पर्यंत ब्राह्मणांचा कब्ज्या असल्यामुळे,

त्यांनी आम्हाला अत्यंत नीच समजून  लुटले . त्यांनी संस्कृत मधून आम्हाला शिव्या काय दिल्या ...आमच्या माय-माऊल्यांची बदनामी काय केली ...विचारूच नका ..
सती गेलेल्या स्त्रीच्या राखेला हात लावण्याचा अधिकार फक्त ब्राह्मणांना ....का?.... तर ती स्त्री विविध दाग-दागिने घातलेली असे .त्या दागिन्यासह ती स्त्री सरणावर बळजबरी जाळली  जायची .ओरडताना तिचा आर्त बाचावाचा ,किंकाळीचा आवाज लोकांना ऐकू येवू नये म्हणून ढोल ,तासे बडवले जायचे .नामर्द ब्राह्मणी संस्कृती हे फक्त डोळ्यांनी बघायची . आणि मग दुसर्या दिवसी राखेतील उजळलेले दागिने इतरांच्या हाती लागू नयेत म्हणून
"सती गेलेल्या स्त्रीच्या राखेला हात लावण्याचा अधिकार फक्त ब्राह्मणांना"
हा नियम भटांनी केला .....एखादा राजा मेल्यास त्याची राणी जर सती गेली तर साधारणतः ५ ते ७ किलो सोने भटाच्या झोळीत पडत असे .......म्हणूनच सतीप्रथा भटांनी उदयाला आणली .....ती त्यांची रोजगार हमी योजना होती ....
  लग्न झाले कि हिंदू अर्थात ब्राह्मण  धर्मात सत्य नारायण घालून गृहस्थ जीवनाला सुरवात होते ....
पण सत्य नारायण घालणारा हिंदू धर्म प्रमुख, तुम्हाला म म म्हणायला सांगतो ...
तुम्ही त्याला कधी विचारले का कि म म च का? क क ,,ग ग का नाही? त्यात पण १ गोम आहे ....
म म म्हणजे .....मम भार्यां म समरपयामी ! म्हणजे माझी बायको समर्पित करतो .......
मग ब्राह्मण अर्थात भूदेव तुमच्या बायकोला तुमच्या डोळ्यासमोर कुंकू लावून स्पर्श करतो ..
म्हणजे आधी ती स्त्री भूदेवाची बायको होते मग तुमची .बघा हि ब्राह्मणी लबाडी ..असल्या कितीतरी भटांच्या करामती सांगता येतील ...

मग घालणार न सत्यनारायण ....म्हणणार न म म ....

Tuesday, 29 May 2012

हे मफिवीर विनायक दामोदर सावरकराने इंग्रजांना लिहिलेले पत्र.......................!

हे मफिवीर विनायक दामोदर सावरकराने इंग्रजांना लिहिलेले पत्र.......................!
 "मी घराबाहेर पडून घडलेला उधळ्याखर्चिक मुलगा आहे मायबाप ब्रिटिश सरकारच्या पंखाखाली सुरक्षित रहाण्यासाठी माझी अंदमानच्या तुरंगातूनसुटका करावी. मी १९११ मध्येही दयेचा अर्ज केला होता. त्याचाही सहानभुतीपूर्वक विचार करून दयाळू आणि परोपकारी असणार्या ब्रिटिश सरकारने माझी सुटका केली तर इंग्रज सरकारच्या घटनात्मक प्रगतीचा मी जन्मभर पुरस्कर्ता राहीन. जोपर्यंत आम्ही (नागरीकच) तुरुंगात आहोत तोपर्यंत इंग्लंडच्या राजेसाहेबांच्या भारतातील रयतेच्या लाखो घरकुलीत आनंद आणि समाधान कसे लाभेल? कारण ते आणि आम्ही एकाच रक्ताचे आहोत. पण आमची सुटका झाली तर सारी रयत हर्षाने आरोळ्या ठोकील आणि शिक्षा सूडबुद्धी न ठेवता माफी आणि पुनर्वसनावर भर देणार्या सरकारचा जयजयकार करील." "एकदा मी स्वत:च सरकारच्या बाजूने झालो की मला गुरूस्थानी मानून रक्तरंजित क्रांतीचे स्वप्न बघणारे भारतातील व परदेशातील हजारो तरुण पुन्हा ब्रिटिश सरकारच्या बाजूने येतील." "माझी भविष्यातील वागणूक सरकारला अनुकूल राहील. इंग्रज सरकारला ज्या पद्धतीने माझ्याकडून सेवा करून घ्याविशी वाटेल त्या पद्ध्तीने काम करण्यास मी तयार आहे. मला तुरुंगात ठेवून सरकारला काय मिळेल? यापेक्षा मला सोडाल तर त्याहीपेक्षा जास्त फायदा सरकारचा होईल. माझ्यासारखा वाट चुकलेला पुत्र आपल्या पितारुपी ब्रिटीश सरकारच्याच दरबारात नाही येणार तर कुठे जाणार?" 
 काय तुम्हाला या देश्द्रोह्याला स्वातंत्र्यवीर म्हणावे वाटते? छत्रपती शिवाजी महाराजांसह खर्या महा -मानवांच्या जयंती अणि पुण्यतिथि कपट रचून तिथी प्रमाने साजरी करणार्या भटांनी ह्या सावरकराची ११ मे ला तिथी नुसार झालेली जयंती का साजरी केलि नाही.आता बघा २८ मे च्या तारखे नुसार होणार्या जयंतीच्या किती पोस्ट मिळतात वाचायला. अन्दमानात काळ्या पाण्याची शिक्षा झालेले जवळपास ७६० लोक होते. ते सर्व शिक्षेत मरण पावले, हे तर कोणाला माहित ही नाहीत. खरे क्रांतिकारी क्रांती सिंह नiना पाटलांच्या तूफान सेनेचे पत्ते ( addres ) व माफीनामा इन्ग्रजाना देऊन १९६६ पर्यंत जीवन जगलेल्या टया सावरकरचाच गवगवा..का ? 
जो कायम छत्री सोबत घेउन रहायचा. उन अणि पावसा पासून नेहमी बचाव करत रहनारा मानुस देश्याला काय स्वातंत्र्य देणार. आतापर्यंत भटानी फ़क्त तोडा अणि राज्य करा हीच प्रवृत्ती बाळगली आहे. हा आतापर्यंतचा इतिहास आहे. पण आज आपण ज्या गोष्टी बदलायला हव्या होत्या त्या न बदलता त्याच हरामखोरांची साथ देत आहत. अणि आपल्यातील  बरेच जन विचरता की आज च्या ब्रम्हानांचा काय दोष.......! अणि ज्याना कोणाला हराम्दास, परश्या, टिळक, सावरकर ह्यांची बाजु घेउन खरया महामानवाना समाजा पासून दूर करून फालतू लोकांचा आदर्श्य म्हणून अशी भटे समजला आदर्श म्हणून दाखवायचे असतील तर तुम्ही ही तेच हरमखोर आहात. हा सर्व ब्राम्हणी कावा आहे. मी खाली पडलो तरी माझ नाक वरतीच, अशातला प्रकार आहे. ब्राम्हण कधीही आपली लबाडी उघडी पडू देत नाही. तो झाकूनच नेणार. त्यांचा सर्व इतिहास हा कळाकुट्ट आहे. लोकांना अजून खरा सावरकर हे काय रसायन होते हे माहित नाही. हा स्वातंत्र्य वीर नव्हता तर संडासवीर होता हे सार्या जगाला माहित झाले . तरी त्याची टिमकी वाजविणारे या देशात आहेत हि मोठी खेदाची गोष्ट आहे. असले पळपुटे आमचे प्रेरणा पुरुष होवूच शकत नाहीत .
जय जिजाऊ.............! जय शिवराय............!! जय शंभू राजे...........!!!

Tuesday, 22 May 2012

ब्राम्हणी साहित्याचा जाळीव इतिहास ;



ब्राह्मणी साहित्याचा जाळीव इतिहास पाहत असताना त्यामध्ये विविध ग्रंथांचा समावेश करता येईल.
 त्यामध्ये
महिलांची बदनामी करणारे
 १)वेदः उपनिषदे २)स्मृती :पुराने .
पण हल्लीच्या जाळीव इतिहासामध्ये दासबोध आधी जाळला पाहिजे .बघा हराम दास काय म्हणतो तो .


दासबोध : दशक ५ वा: मंत्रांचा
समास १ ला :- गरुनीश्चय .

गरु तो सकळांसी ब्राह्मण ! जरी तो झाला क्रियाहीन !!
 तरी तयासीच शरण ! अनन्य भावे असावे !!६!!

अहो या ब्राह्मणा कारणे ! अवतार घेतला नारायणे !
 विष्णूने श्रीवत्स मिरवणे !! तिथे इतर ते किती !!७!!

ब्राह्मण वाचणे प्रमाण ! होती शूद्रांचे ब्राह्मण !!
 धातू पाषाणी देवपण !! ब्राह्मनाचेनी मंत्रे !!८!!
सकळांसी पूज्य ब्राह्मण ! हे मुख्य वेदाज्ञा प्रमाण !!
 वेद विरहित ते अप्रमाण !! अप्रिय भगवंता !!१० !!

असो ब्राह्मण सुरवर वंदती ! तेथे मानव बापुडे किती !
! ब्राह्मण जरी मूढमती !! तरी तो जगात वंद्य !! १५ !!

म्हणजे काय तर ब्राह्मण जरी मूढ -मूर्ख मती -बुद्धीने असला तरी तो जगात वंद्य ...बघा ..राम डासाचे लिखाण
.असले असमानता दर्शक लिखाण लोकशाहीतहि साहित्य दिंडीत खांद्यावर घेवून मिरवले जाते ...आणि आम्ही परिवर्तनवादी मात्र  गप्पच ...

Friday, 18 May 2012

हिंदू -मुसलमान भांडणे म्हणजे ....sc st ,obc विरुद्ध धर्मांतरीत sc st ,obc होय .

या देशात  आमचे शत्रू मुस्लीम आहेत असा सतत प्रचारप्रसार ब्राह्मण  करत आहेत. आणि तरुण या गोष्टीला बळी पडतात .आपण तपासून पहिले पाहिजे कि काय खरच मुस्लीम आमचे शत्रू आहेत का ? 
१) काय या देशाची न्याय पालिका,कार्यपालिका ,प्रचार प्रसार माध्यमे  मुसलमानांच्या ताब्यात आहेत ? 
२) काय या देशात इस्लाम येण्या अगोदर समस्याच नव्हत्या काय ?
३)इस्लाम या देशात येण्या अगोदर  वर्ण वेव्यस्था, जाती  वेव्यस्था, सती प्रथा , आदिवास्यांच्या समस्या ,अस्प्रश्यता , हे कोणी निर्माण केले ?का याला देखील मुसलमान जबाबदार ?
४) सम्राट बळी राजा ,सम्राट ब्रहतरथ , छत्रपती शिवाजी महाराज ,छत्रपती संभाजी महाराज , संत तुकोबाराय ,संत नामदेव ,संत चोखोबाराय ,यांचा खून काय मुसलमानांनी केला ?
५)छ.शिवराय यांच्या  राज्याभिषेकाला काय मुसलमानांनी विरोध केला . शिवरायांवर पहिला वार काय मुसलमानांनी केला ?
६) संत तुकोबाराय यांचा गाथा पाण्यात बुडवणे ,जनाबाईला सुळावर देणे , असली कामे काय मुसलमानांनी केली ? 
७) राष्ट्रपिता जोतीराव फुले यांच्यावर मारेकरी काय मुसलमानांनी पाठवले.
८)काय सावित्रीमाई फुलेवर शेन ,गोटे मुसलमानांनी फेकले ? 
९) शाहूजी महाराज यांचा बदनामीकारक प्रचार, त्यांच्यावर प्राणघातक हल्ले , काय मुसलमानांनी केले ?
मग मुस्लीम आमचे शत्रू कसे ? बरे बाह्मण हिंदू - इस्लाम अशी भांडणे आहेत असे का ? म्हणत नाहीत .ते हिंदू- मुसलमान असे का ? म्हणतात ...कारण जगातील इतर इस्लामचे राष्ट्र भटांचा शंकराच्यार्य  उडवतील म्हणून ब्राह्मण मुसलमान म्हणतात इस्लाम नाही .
जगातील इस्लाम मध्ये जाती नाहीत .पण भारतीय इस्लाम मध्ये जाती आहेत .का ?
कारण आमचे जात भाई जेव्हा ह्या भटांना कंटाळले तेव्हा त्यांनी इस्लाम कबुल केला ..कारण तिकडे समता होती .
मग इस्लाम मध्ये जाताना आमचे 
पाटील -पटेल झाले .
माळी-बागवान झाले .
शिंपी -बुनकर झाले .
खाटिक चे -कसाब झाले .तांबोळी ,देशमुख ,चोधरी दोन्हीकडे हि आहेत .
मग मुसलमान आमचे बांधव  नाहीतर कोण ?
मग हिंदू -मुसलमान भांडणे म्हणजे ....sc st ,obc विरुद्ध धर्मांतरीत sc st ,obc होय .

Friday, 4 May 2012

“भागवत गीता ” अध्याय :९ श्लोक :३२

 “भागवत गीता ” अध्याय :९ श्लोक :३२ 

मां हि पार्थ व्यापाश्रित्य येपि स्यु : पापयोनयः !
स्त्रियो वैश्यास्तथा श्रुद्रास्तेपि यान्ति परा गतिम: II ३० II
म्हणजे काय ?
हा श्लोक सांगतो कि स्त्री ,वैश्य आणि शुद्र ( मराठा -बहुजन ) हे पाप योनीतून जन्माला येतात ….(पण त्यांनी जर माझी भक्ती केली तर ते चांगल्या गतीला प्राप्त होतात .)
तर हा श्लोक ब्राह्मणांनी कृष्णाच्या तोंडून घातला ….कृष्ण सुद्धा राक्षस कुळातील. तो सुद्धा शूद्राच .मग तो त्याची आई आणि स्वताला पपयोनी तून जन्माला आलो असे कसे म्हणेन …..ब्राह्मण लोकांनी नंतर हा श्लोक गीतेत घुसडला …
हि मराठा -बहुजनांची आणि आमच्या माय-माऊल्यांची बदनामी नाही का .
शिवाय कृष्ण तर एका ठिकाणी गीतेतच म्हणतो कि चातुर वर्न्याम माया श्रस्ठीम गुण कर्म विभागशाह. अर्थात हि चातुर वर्ण्य स्रस्ठी माझीच आहे आणि ती गुण कर्म यावर आधारित आहे ( ती भटान्सारखी जन्मावर आधारित नाही ).मग गीतेत हा विरोधाभास कसा?
सुरवातीला ब्राह्मण गीतेला मान्यता देत नव्हते .मग ब्राह्मण आज गीता डोक्यावर घेवून का मिरवत आहेत .याचे कारण काय?
बरे गीता हि गीताच …..तिला जसी आहे तसी म्हणायची गरज काय ?
आज गीतेच्या मुखप्रष्ठावर ” भगवत गीता जसी आहे तसी ” हे नाव का टाकले जाते ….यात काही तरी गोम आहे ….जर हि गीता जासी आहे तसीच आहे तर मग  dupliket गीता कुठे आहे ?
हा म्हणे आमचा धर्म ग्रंथ ..जसा आहे तसाच..यात आमच्या महिलांची बदनामी ,असमानता,आम्हाला शिव्या .
डॉ.आ. ह. साळुंखे या बद्दल म्हणतात कि
“गुलामांचा आणि गुलाम करणार्यांचा धर्म एक असू शाकेत नाही “
मग भटांचा धर्म आणि आमचा एक असू शकतो काय ? भटांचे  धर्मग्रंथ आणि आमचे  धर्मग्रंथ एक असू शकतील काय ?  बोला काय करायचे भटांच्या धर्म ग्रंथांचे ?
F .B . वासियानो “भागवत गीता ” अध्याय :९ श्लोक :३२
मां हि पार्थ व्यापाश्रित्य येपि स्यु : पापयोनयः !
स्त्रियो वैश्यास्तथा श्रुद्रास्तेपि यान्ति परा गतिम: II ३० II
म्हणजे काय ?
हा श्लोक सांगतो कि स्त्री ,वैश्य आणि शुद्र ( मराठा -बहुजन ) हे पाप योनीतून जन्माला येतात ….(पण त्यांनी जर माझी भक्ती केली तर ते चांगल्या गतीला प्राप्त होतात .)
तर हा श्लोक ब्राह्मणांनी कृष्णाच्या तोंडून घातला ….कृष्ण सुद्धा राक्षस कुळातील. तो सुद्धा शूद्राच .मग तो त्याची आई आणि स्वताला पपयोनी तून जन्माला आलो असे कसे म्हणेन …..ब्राह्मण लोकांनी नंतर हा श्लोक गीतेत घुसडला …
हि मराठा -बहुजनांची आणि आमच्या माय-माऊल्यांची बदनामी नाही का .
शिवाय कृष्ण तर एका ठिकाणी गीतेतच म्हणतो कि चातुर वर्न्याम माया श्रस्ठीम गुण कर्म विभागशाह. अर्थात हि चातुर वर्ण्य स्रस्ठी माझीच आहे आणि ती गुण कर्म यावर आधारित आहे ( ती भटान्सारखी जन्मावर आधारित नाही ).मग गीतेत हा विरोधाभास कसा?
सुरवातीला ब्राह्मण गीतेला मान्यता देत नव्हते .मग ब्राह्मण आज गीता डोक्यावर घेवून का मिरवत आहेत .याचे कारण काय?
बरे गीता हि गीताच …..तिला जसी आहे तसी म्हणायची गरज काय ?
आज गीतेच्या मुखप्रष्ठावर ” भगवत गीता जसी आहे तसी ” हे नाव का टाकले जाते ….यात काही तरी गोम आहे ….जर हि गीता जासी आहे तसीच आहे तर मग  dupliket गीता कुठे आहे ?
हा म्हणे आमचा धर्म ग्रंथ ..जसा आहे तसाच..यात आमच्या महिलांची बदनामी ,असमानता,आम्हाला शिव्या .
डॉ.आ. ह. साळुंखे या बद्दल म्हणतात कि
“गुलामांचा आणि गुलाम करणार्यांचा धर्म एक असू शाकेत नाही “
मग भटांचा धर्म आणि आमचा एक असू शकतो काय ? भटांचे  धर्मग्रंथ आणि आमचे  धर्मग्रंथ एक असू शकतील काय ?  बोला काय करायचे भटांच्या धर्म ग्रंथांचे ?
F .B . वासियानो “भागवत गीता ” अध्याय :९ श्लोक :३२
मां हि पार्थ व्यापाश्रित्य येपि स्यु : पापयोनयः !
स्त्रियो वैश्यास्तथा श्रुद्रास्तेपि यान्ति परा गतिम: II ३० II
म्हणजे काय ?
हा श्लोक सांगतो कि स्त्री ,वैश्य आणि शुद्र ( मराठा -बहुजन ) हे पाप योनीतून जन्माला येतात ….(पण त्यांनी जर माझी भक्ती केली तर ते चांगल्या गतीला प्राप्त होतात .)
तर हा श्लोक ब्राह्मणांनी कृष्णाच्या तोंडून घातला ….कृष्ण सुद्धा राक्षस कुळातील. तो सुद्धा शूद्राच .मग तो त्याची आई आणि स्वताला पपयोनी तून जन्माला आलो असे कसे म्हणेन …..ब्राह्मण लोकांनी नंतर हा श्लोक गीतेत घुसडला …
हि मराठा -बहुजनांची आणि आमच्या माय-माऊल्यांची बदनामी नाही का .
शिवाय कृष्ण तर एका ठिकाणी गीतेतच म्हणतो कि चातुर वर्न्याम माया श्रस्ठीम गुण कर्म विभागशाह. अर्थात हि चातुर वर्ण्य स्रस्ठी माझीच आहे आणि ती गुण कर्म यावर आधारित आहे ( ती भटान्सारखी जन्मावर आधारित नाही ).मग गीतेत हा विरोधाभास कसा?
सुरवातीला ब्राह्मण गीतेला मान्यता देत नव्हते .मग ब्राह्मण आज गीता डोक्यावर घेवून का मिरवत आहेत .याचे कारण काय?
बरे गीता हि गीताच …..तिला जसी आहे तसी म्हणायची गरज काय ?
आज गीतेच्या मुखप्रष्ठावर ” भगवत गीता जसी आहे तसी ” हे नाव का टाकले जाते ….यात काही तरी गोम आहे ….जर हि गीता जासी आहे तसीच आहे तर मग  dupliket गीता कुठे आहे ?
हा म्हणे आमचा धर्म ग्रंथ ..जसा आहे तसाच..यात आमच्या महिलांची बदनामी ,असमानता,आम्हाला शिव्या .
डॉ.आ. ह. साळुंखे या बद्दल म्हणतात कि
“गुलामांचा आणि गुलाम करणार्यांचा धर्म एक असू शाकेत नाही “
मग भटांचा धर्म आणि आमचा एक असू शकतो काय ? भटांचे  धर्मग्रंथ आणि आमचे  धर्मग्रंथ एक असू शकतील काय ?  बोला काय करायचे भटांच्या धर्म ग्रंथांचे ?

धर्म सोडून ब्राह्मणांनी “अल्लोपनिषद” नावाचा ग्रंथ मोगालांसाठी लिहिला.

मित्रांनो ,
अकबराच्या काळात ब्राह्मणांनी हिंदू अर्थात ब्राह्मण  धर्म सोडून आणि पटापट मुस्लीम धर्म स्वीकारून खुश करण्यासाठी तसेच मुस्लीम धर्माचे ब्रम्हणीकरण करण्यासाठी   ”अल्लोपनिषद” नावाचा ग्रंथ मोगालांसाठी लिहिला.
ब्राह्मण स्वतः मुस्लीम बनले .पुढे असेच छ . शिवराय १ का भटाला आमच्याकडे येवून काम कर म्हणाले तर तो भट म्हणाला कि ” दिल्लीश्वरो जगदिश्वरो माझ्या मीठ मिरची पुरता पुरेसा आहे ” म्हणजे औरंगजेबच दिल्लीचा ईश्वर आणि जगाचा ईश्वर .बघा भट नीती .ह्या भटांनी (पेशव्यांनी) पानिपतवर नेवून  जाणून बुजून मराठ्यांची १ पिढीच गारद केली.
तसेच १९९२ ला राम राम करून ह्याच भटांनी राम मंदिराच्या नवाखाली मुस्लिमांच्या विरोधात  मराठ्यांची तरुण पिढी गारद केली .बाबरी मस्जीत प्रकरणात १ हि भट मेल्याची नोंद नाही .आज हे भटे जे राम राम करतात .खरेच यांना रामाचा पुळका आहे का ?…अज्जिबात नाही .कारण हे जिकडे खायला मिळेल तिकडे जाणारे.राम सोडून मुस्लीम होणारे. ह्यांचे आजही सगळे पाहुणे मुस्लीम .
या बद्दल संत तुकाराम सुद्धा म्हणतात कि
सांडूनिया राम राम !!ब्राह्मण करती दोम दोम !!
म्हणजे राम सोडून ब्राह्मण मोगलांचा  प्रचार करतात ….मोगल आणि मुस्लीम यांमध्ये फरक आहे .मोगल विदेशी वंश आहे .तर मुस्लीम हे  इथलेच धर्म परवर्तीत आमचे बांधव  आहेत . ते माळ्याचे  बागवान झाले ,पाटलाचे पटेल झाले , नाव्ह्याचे हजाम झाले ,शिंपी चे बुनकर झाले ,देशमुख तर दोन्हीकडे आहेत . ब्राह्मण कपटी पणाने आमच्यात भांडणे लावतात . हिंदू -मुस्लीम भांडणे म्हणजे …सख्या भावांमध्ये भांडणे होय ….sc,st,obc विरुद्ध धर्म परिवर्तीत  sc,st ,obc .मग खरे धर्म द्रोही कोण ?….