Thursday, 16 August 2012

आझादी का आंदोलन ,आझादी का आंदोलन नाही था,बल्की वह आर्य युरेशिअन ब्रह्मणो के आझादी का आंदोलन था !

जय जिजाऊ : भारत के मूलनिवासी बहुजन लोग विदेशी बामनो के 5000 सालो से गुलाम है. जब जब हमारे लोगो ने बामनो की गुलामी के खिलाफ विद्रोह तेज किया, तब तब बामनो ने उनकी मदद के लिए अन्य विदेशियों को भारत पर आक्रमण का न्योता दिया. उसी के तहत, भारत पर समय समय पर हुन, कुषाण, शक, पोर्तुगीस, मुग़ल, डच, ब्रिटिश इन विदेशियोने आक्रमण करके हमे गुलाम बनाया. बामनो ने उनका साथ दिया और हमारी गुलामी बरक़रार रखी.

बाबर को समज में आया की भारत के वास्तविक शासक बामन लोग है. इसलिए उसने "बाबरनामा" में उसके वंशजो को सन्देश दिया की, " भारत के वास्तविक शासक बामन लोग है; इसलिए अगर आपको भारत पर दीर्घकाल शासन करना है तो बामनो को साथ लेकर शासन करना होगा". उसी के तहत मुघलो ने बामनो को उनके शासन में ४०% भागीदारी (reservation ) दिया. अकबर के ९ में से ९ रत्न बामन ही थे! इसलिए ६५० साल के मुघलो के शासन के खिलाफ बामनो ने कभी भी स्वतंत्रता युद्ध

 नहीं छेडा था.

मुघलो की तरह ब्रिटिशो ने भी समजा की यहाँ के वास्तविक शासक बामन ही है. बामनो ने मुघलो की तरह ब्रिटिश शासन में ४०% भागीदारी (reservation ) के लिए और ब्रिटिशो को समजाने के लिए १८८५ में " कांग्रेस" की स्थापना की. इसी भागीदारी को कांग्रेस के बामन लोग और तिलक "स्वराज्य" कहते थे. लेकिन ब्रिटिश लोग समतावादी थे. उन्होंने बामनो को शासन में ४०% भागीदारी (reservation ) देने से मना किया. बामनो ने उन्हें बताया की हम तुम्हारी तरह ही विदेशी है, लेकिन उन्होंने बामनो का कुछ नहीं सुना.

१८८५ से १९२९ तक बामन लोग ब्रिटिशो को कांग्रेस के माध्यम से समजाते रहे. लेकिन ब्रिटिशो ने बामनो का कुछ सुनने की बजाय, बामनवाद ख़त्म करना शुरू किया और मूलनिवासी बहुजनो को न्याय देना जारी रखा. इससे बामन घबरा गए. उन्होंने सोचा की अगर ऐसा ही चलता रहेगा तो जल्द ही हमारी भारत की सत्ता चली जाएगी. इसलिए बामनो ने ब्रिटिशो को भगाने के लिए गाँधी के नेतृत्व में कहा "चले जाओ". मतलब, यह "बामनो के आज़ादी" का आन्दोलन था. इसी बामनो के आन्दोलन के तहत, १५ अगस्त १९४७ को बामन लोग ब्रिटिशो की गुलामी से आजाद हुए. यह हमारी आज़ादी नहीं थी. इसलिए अन्नाभाऊ साठे ने कहा, "यह आज़ादी जूठी है."

हम ( मूलनिवासी बहुजन) अभी भी आजाद नहीं है; हम बामनो के गुलाम है. इसलिए हमारी हजारो समश्या है. हमारी आज़ादी का आन्दोलन १८४८ में महात्मा फुले ने शुरू किया था. उसको शाहू महाराज और बाबासाहेब आंबेडकर ने आगे बढाया था. इस आन्दोलन को और आगे बढ़ना होगा . अगर हमे हमारी हजारो समस्याओ से छुटकारा पाना है, तो पहले हमे हमारी "आज़ादी" हासिल करनी होगी.
 
आझादी का आंदोलन ,आझादी का आंदोलन नाही था,बल्की वह आर्य युरेशिअन ब्रह्मणो के आझादी का आंदोलन था !  

2 comments:

  1. हे स्वातंत्र्य ब्राह्मणांसाठी मिळणार आहे हे तुम्हाला कळते पण या लोकांना कळले नाही
    महात्मा गांधी ,वल्लभभाई पटेल ,विठ्ठलभाई पटेल ,भगतसिंग ,राम मनोहर लोहिया ,खुदिराम बोस, सुभाषचंद्र बोस ,उधमसिंग ,मदनलाल दिन्ग्रा, दादाभाई नवरोजी ,शिरीषकुमार',क कामराज ,चंद्रशेखर आझाद ,पद्मजा नायडू सरोजिनी नायडू ,राणी चेन्न्मा बिरसा मुंडा ,सिकंदर बख्त ,यशवंतराव चव्हाण',बाबू जगजीवनराम ,अंनी बेझंट ,शंकरराव चव्हाण ,वसंतदादा पाटील ,काझी नझरू ल इस्लाम',मौलाना अबुल कलम आझाद ,फक्रुद्दीन आली अहमद खान अब्दुल गफ्फार खान ,रत्नाप्पा कुंभार ,शंकरलाल बंकर ,क्रांतीसिंग नाना पाटील नागनाथअण्णा नाईकवाडी आणि इतर हजारो लोक यांना ब्राह्मणांनी मूर्ख बनविले आणि स्वातंत्र्य केवळ ब्राह्मणासाठी घेतले यावरून हे सर्व लोक तुमच्या मते मूर्ख असावेत

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  2. Ho tr amchya lokanncha varch kela bhatanni .....pan tyanche tyag ani balidan kahi vaya gele nahi ...

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