Thursday, 15 August 2013

हे स्वातंत्र्य खोटे आहे . ईथे लोकशाही कोठे आहे .


 स्वातंत्र्य मिळून आज जवळ जवळ ६० पूर्ण झाली . काय मिळाले आम्हाला . 

१)मराठ्यांना आरक्षण नाही , मुस्लिमांचे सच्चर कमिशन लागू  नाही , भटक्यांचे रेणके कमिशन धूळ खात पडले आहे . 
२) या देशात ५ लाख शेतकर्यांनी आत्महत्त्या केल्या . तरुण रोज   निराशेतून आत्महत्त्या करतात . 
३) स्त्रिया रस्त्यावर संडासला बसून बसून पोटाच्या आजाराने      तडपून तडपून या देश्यात मारतात . 
४) भूकबळी ज्याला गोंडस शब्दात कुपोषण म्हणतात . त्याचे प्रमाण सेन गुप्ता समितीला विचारा … हजारो बालके जेवायला न मिळाल्याने या देश्यात मारावीत ?


५) खा.ऊ.जा धोरण लागू करून हा देश तर खावून टाकलाच पण बाहेरच्या विदेशी लोकांना सुद्धा विकला हरामखोरांनी .
६)राजमाता राष्ट्रमाता जिजाऊंची बदनामी , दर बाबासाहेब आंबेडकर यांची व्यंग चित्रातून बदनामी , अहिल्यामाई होळकर यांची
बदनामी . ह्या देशाला काही नियमावली आहे कि नाही
७) बायकोला वाढदिवसाला विमाने भेट देण्यारे याच देश्यात , आणि जावयाची लग्नातील बोलनीची अंगठी न देता आल्यामुळे जीव देणारे हि ह्याच देश्यात .
८) १ १ हजार कोटींच्या बंगल्यात राहणारे ह्याच देश्यात आणि फुटपाथवर गाडी मागे घेताना झोपेतच चेग्रून मेलेले ह्याच देश्यात ९) शेतीला चोरून वीज घेतली म्हणून लग्नाला आलेल्या मुलीसमवेत जेल मध्ये जाणारा सर्वसामान्य शेतकरी.आणि कोटींचे घोटाळे करून सुद्धा मोकार फिरणारे राजकीय दरोडेखोर नेते. स्वातंत्र्य कुणाचे .
१०) इंग्रजांच्या काळात शेतीला १३% बजेट होते आणि आता ० % सुद्धा नाही …कस्ले स्वातंत्र्य । — 

स्वातंत्रता कीस गधे का नाम है ।

स्वातंत्रता कीस गधे  का नाम है ।




 साहित्य सम्राट अण्णाभाऊ साठे अपनी एक मुर्गी नाम कि कहाणी में एक सवाल खडा करते है कि "स्वातंत्रता कीस गधे  का नाम है?"
साच मे आझादी किसकी । येह तो ट्रान्सफर ऑफ पावर है । एक विदेशिने(इंग्रेज)जाते जाते दुसरे विदेशी(ब्राह्मण) के हात में सत्ता सोप दी । 1947 को 3%विदेशी ब्राह्मण ,विदेशी अंग्रेजो की गुलामी से आजाद हो गया
हम भारत के 85% मूलनिवासी बहुजन पिछड़ी जात (OBC SC ST और इनमे से धर्मपरिवर्तित ) के लोग आज भी विदेशी ब्राह्मणों के गुलाम है !ये आझादी हमारी नाही है । 'दुनिया का भारत ही एकमात्र ऐसा देश है ,जहा के लोग गुलाम होकर ,गुलामी में भी अपनी आजादी का झूठा जश्न मानाते  है !''

1947 को 3%विदेशी ब्राह्मण ,विदेशी अंग्रेजो की गुलामी से आजाद हो गया
हम भारत के 85% मूलनिवासी बहुजन पिछड़ी जात (OBC SC ST और इनमे से धर्मपरिवर्तित ) के लोग आज भी विदेशी ब्राह्मणों के गुलाम है !!

स्वातंत्रताके अवसर पर खुद को कूछ सवाल पुछो .

१)स्वतंत्रता के दुसरे हि दिन यांनी १६ ऑगस्ट १९४७ को अण्णाभाऊ साठेँजी ने लाखोँ लोगोका मोर्चा निकाल के  ' ये आजादी झुठी है ' ऐसा  क्यू कहा ?

२)आदिवासीँयो ने आज हातो में शस्त्र , हतियार क्यो उठाये है ?

३)राष्ट्रगीत असल में  अर्थ क्या है, सच्च्याई क्यो छुपाई जा रही है  ?

४) हमे जो संविधान ने हक ओर अधिकार दिये थे , ओ क्यू  छिन लिये जा राहे है ?

५)किसान आत्महत्या क्यो कर रहे है ? ऐसी  परिस्थिती किसके वजह से आई ?

६)क्या सच मे  हम आझाद  है ?

Sunday, 14 July 2013

आखिर कौन है ये शिर्डी के 'साईबाबा' , 'स्वामी समर्थ' और शेँगाव के 'गजानन महाराज' ?

ता 19 जुलै 1994 को संपादक दिपक तिलक ईनका सह्याद्री अंक मे दुसरा नानासाहब पेशवा ही साईबाबा है यह लेख प्रसिद्ध हूआ था लेखक अरुण ताम्हणकर ईनोने रहस्योद्घाटन करते हूए एक अज्ञात साधु का आधार लिया है । ऊनका ये लेख दै मुलनिवासी नायक के पास ऊपलब्ध है । ताम्हणकर ईस लेख मेँ जो कहते है ऊसका सारांष तो यही कहता है सदाशिवराव पेशवा ही स्वामी समर्थ हैतात्या टोपे ये शेगांव के गजानन महाराज हैदुसरा नानासाहब पेशवा ही साईबाबा है । लेखक ताम्हनकर को बाबा के प्रकटिकरण मान्य नही वे कहते है कि ये बाबा लोग अचानक प्रकट हूए कैसे? साधारण आदमी के तरह माँ के पेट से जनम क्यो नही लिया? स्वजाति के बारमे अपनने ऊलटा सिधा बोल दिया ईसके लिए ताम्हणकर ने अपना मुँह बंद किया तो कभी खोला ही नही । ब्रामणो ने स्वामी समर्थ महाराज ईनके कई जगह मठ स्थापण किये अक्कलकोट मंगलवेढा चिपलुण अहमदनगर कल्याण दादर गिरगांव (महाराष्ट्र) ईन प्रमुख संस्थानो (मठ) मे स्वामी का प्रकट दिन हर साल मनाया जाता है । और हर मठो मे खालि सिंहासन है । क्यो कि सिर्फ ब्रामण ही जानते है की स्वामी समर्थ ये पेशवा सदाशिवरावही है । ईस प्रकरण का शोध लेने के लिए प्रत्यक्ष कुछ मठो मेँ भी जाकर देखा है । यह लेख किसीकी भावनाओ को ठेच पहूचाने के लिए नही लिखा गया है । सामान्य जनता को ब्रामणी षडयंत्र समजे, गुप्त बाते समजकर अंधश्रद्धा खात्मा हो यही हेतु है ।पानिपत कि तीसरी लडाईता 13 फरवरी 1760 को पटदुर यहा विश्वासराव पेशवा ईनके साथ सदाशिवराव पेशवा को मिशन पर भेजने का निर्णय लिया गया । ग्वालियर होकर ता 30 मई 1760 को तोफ, रसद, बारुद, घोडदल कुछ औरते लेकर सव्वालाख फौज निकली । अहमदशाह अब्दाली चौकन्ना हो गया वह कुशल सेनापती था ऊपर से पेशवाओ मे चालाकी का अभाव था सदाशिवराव ये कुत्सित जिद्दि स्वभाव के थे (ऐसा ब्रामण कादंबरीकारो ने लिख कर रखा है) ता14 जनवरी 1760 को पानिपत यहा लडाई हूई ।विश्वाराव ईनकि गोलि लगने से म्रुत्यु हो जाति है तो सदाशिवराव बच्चो कि तरह रोने लगते है ईससे सैनिको का मनोबल कम होता है । सदाशिवराव को बिना लडखडाए मैदान खडा रहना आवश्यक था । पर अचानक सदाशिवराव मैदान मे से गायब हो गये(म .यु. भा. ईतिहास पेज क्र 112) । ईतिहास मे पाणिपत कि लडाई का वर्णन सव्वा लाख चुडिया तुट गई ऐसा किया गया है । स्वामी समर्थ अचानक ऊसी समय 1760/61 मंगलवेढा (महाराष्ट्र) को प्रकट हूए स्वामी समर्थ के प्रकटिकरण से पाणिपत कि लडाई का घटनाक्रम जुडता है ।पहले तो मंगलवेढा गांव के लोग ऊन्हे नग्न मतिमंद पागल व्यक्ती समजते थे । कुछ सालो में ही ईस तरुण नग्न मनुष्य का दिगंबर बाबा हो गया ।(गांधिजी भि सव्वालाख पट चालाक थे ऊनोने प्राप्त किया हूआ महात्मापन एकनंबर माडल है ।)स्वामि समर्थ का चरित्रई स 1818 को ब्रामण गोपलबुवा केलकर ने स्वामी कि पहलि बखर(Historical document) लिखि । गोपालबुवा ये स्वामी के बहुतसी गुप्त बाते जानने वाले शिष्य थे । ऊसके बाद ता 09 मई 1975 को रामचंद्र चिंतामण ने बखर का पुन:लेखन किया । अनंतकोटी ब्रम्हांडनायक राजाधिराज स्वामी समर्थ महाराज ईनका जनम कहा हुआ?, वो छोटे के बडे कहा हुए ? ऊनके मातापिता कौन ? ऊनकी जाति कोनसी ? ईनमसे कोई भि बातो का पता नही चलता ऐसा बखर मे लिखा है । स्वामि मंगलवेढा मे 12 साल रहे । गांव के लोग ऊनको मतिमंद मनुष्य समजते थे । बसप्पा तेलि के घर मे रहने वाला यह नग्न व्यक्ती सिंदुर लगाए हूए पत्थरो पर पेशाब करता था ।स्मशान मे कबरो पर संडास करता था ।बसप्पा तेलि के घर के चुल्हे मे संडास करता ये सब स्वामी के लिला थे, वे अवतारी पुरुष थे ऐसा बखर कहती है (अंग्रेजो को कुछ ब्रामण साधु सन्यासीयो के जिवन चरीत्र के सबुत मिले एक जानकारी हमारे पढने मे आयी के एक साधु अपने अनुयाईयो को अपनी संडास खाने देता और ऊसके बाद ही ऊसे अपना चेला बनाता )। परंतु बसप्पा कि पत्नी मात्र अपना पती कहासे ईस मतिमंद पगले के पिछे लग गया ईसके लिए दुखी थी । रोजि रोटी करके पेठ भरनेवाला यह तेलि परिवार बहुत ही गरीब मे जी रहा था । अचानक बसप्पा के परिवार को कहासे तो सोने की खान मील गयी और उनकी गरीबी हमेशा के लिए नष्ट हो गयी । असलियत मे स्वामी को मिलने के लिए मालोजिराव पेशवा मंगलवेढा आते थे ।ऊन्होने स्वामी का महिने का खर्चा बसप्पा को देने की व्यवस्थ लगा रखी थी । स्वामी कभी कभी बसप्पा के परिवारवालो को घर से बाहर निकाल देते और दरवाजे के सामने लाठी लेकर बैठते ।पेशवाओसे महिना अर्थसहाय्य मिलने के बाद गणपत चोलप्पा नाम का नौकर स्वामी की सेवा के लिए ऊपस्थित हो गया ।मै टोली तयार करता हूस्वामी मंगलवेढा मे रहते समय ऊन्हे जबभी पागलपन का झटका आता तो ऊने शांत करने के लिए चेले गांव कि मतिमंद स्त्रि सरस्वती सुनारीन को लाते ।यह मतिमंद स्त्रि लाठी और बगल मेँ फटे कपडो का गठ्ठा लेकर चेलो के पिछे भागती एक चेला कहता 'ज्ञानबा तुकारम' अर्थात दुसरा कहता 'पगली का क्या काम' यह शरारत देख स्वामी जोरजोरसे हसते इतना कि ऊनका पलंग भि हिलता ।12 साल रहने के बाद भी स्थीती नही सुधारी । अक्कलकोट मे चिंतोपंत टोल के यहासे एरंडी की सुखी लकडियो के हतेलिभर तुकडे करते । ऊनमे मिट्टि भरते और फिर पाँच पाँच सात सात तुकडे सैनिक बंदुक जैसे रखते है उसि प्रकार लाईन से रखते । ये ऊपक्रम कई महीने चलता किसिने अगर पुछा तो स्वामी कहते मै टोली (पलटन) तयार करता हू ।ऊसके बाद स्वामी अक्कलकोट मे दुसरा खेल खेलने लगे । अक्कलकोट मे लक्ष्मी नाम कि ऐक तोफ है वहा जाकर तोफ के मुंह मे सिर डाल कर घंटो बैठते ।बुधावारपेठ मे बडबडाते 'अब हिंदु का कुछ रहा नही घोडा गया हाति गया पालखि गया सब कुछ गया' और बिचमेही चिल्लाते सरबत्ती लगाव! यह सब पाणिपत की हार का परिणाम तो नही ? आज तक सदाशिवपेठी लेखक पेशवाओ के गुण गाते नही थके । स्वामी , राऊ ईन कादंबरीयो मे 'तोतया' कहके ईसि पागलपण का वर्णन किया है ।जो पेशवा गिरफ्तार हुवा क्या वो पागल था ? क्या वो पागलपण का नाटक करता था ? ऐसा प्रश्न कादंबरी पढने वालो को नही पडा ।


स्वामी एक जगह कभी बैठते नही थे । दिन मे सात आठ बार वो जगह बदलते ईसिलीए ऊन्हे चंचल भारती भी कहते । अक्कलकोट मे स्वामी के स्वतंत्र आश्रम की व्यवस्था की गयी थी । ईस काम मे राणी साहब बहूत ज्यादा ध्यान देती । ईस प्रकार ब्रामणी खोपडी ने मतिमंद सदाशिवराव का स्वामी समर्थ महाराज किया था ।स्वामी के दर्शन से हमारे तूम्हारे प्रश्न छुटते है , भाकड गाय दुध देती है , स्त्रियो को बच्चे होते है । ऐसा प्रचार अडोस पडोस के गांवो मे किया जाता प्रचार मे ब्रामण स्त्रियो का भी सहभाग रहता । पेशवाओ के दफ्तर के दस्तावेजो के प्रमाण से पता चलता है की ब्रम्हेंद्रस्वामी धावडशिकर ये स्वामी के भेस मे शाहूकार और बद्चलन आचरण के थे । ब्रंम्हेँद्रस्वामी के पास लगभग 20 स्त्रि दासिया थी । जहा जहा स्वामी रहते वहा वहा स्त्रि दासिया जाती । ऊनमेँसे कुछ प्रसिद्ध दासियो के नाम ईस प्रकार से है सजनी, गंगी, सोनी, लक्ष्मी, मानकी, नागी, राधी, गोदी, नथी, कृष्णी, यशोदा, नयनी, आनंदी, ई . ये सभी पेशवाओ कि तरफ से नजराणा था ऐसा जानकारो का कहना है । ईतनाही नही जिनको पुत्रप्राप्ती नही होती थी ऊनको स्वामी के पास लाया जाता और ऊनको स्वामी का विशिष्ट प्रसाद दिया जाता । कुछ रातो को तो स्वामी के मठो से अनैतिक मार्ग से पुत्रप्राप्ती की जाती । ईस सारे खेल पर पेशवाओ के जबरदस्ती कि वजह से परदा पड जाता । यही रित स्वामी समर्थ कि थी ऐसा दस्तावेजो के आधार पर प्रमाणीत किया जा सकता है ।
' मुंगी पैठण की विठाबाई '
स्वामी के दर्शन को भक्त आने लगे आश्रम मे गाय, बकरी, कुत्ते, बिल्लियो की संख्या बढने लगी । केशर कस्तुरी के मिश्रण करके पेशवाओ की तरह सीर पर गंध लगाया जाता स्वामी कभी दाढी रखते कभी निकालते वे लहरी स्वभाव के थे ।स्त्रीयोँ के सत्र मेँ पुरुषो को प्रवेश नही था । स्वामी को कभी कभी साडी चोली पहनाकर बिठाया जाता पर स्वामी अधिकतर लंगोठ पहनकर बैठना पसंद करते । मुंगी पैठणकी विठाबाई ये भि स्वामी की दासी थी । एकबार ऊसने चोलप्पा गणपत को साथ मेँ लेकर पंढरपुर जाने का विचार किया । स्वामी को ये समजने के बाद स्वामी ने सबके सामने उसको पुछा की क्या ? अब तक विठोबा का लिंग पकडने नही गयी ? यह सुनकर वहा ईकठ्ठा हूई सभी औरतो ने शर्म से गर्दन निचे कर दी (स्वामी समर्थ बखर पेज क्र. 46)।
" सुंदराबाई प्रकरण "
दिन ब दीन अक्कलकोट मे भक्तो कि संख्या बढती गयी वैसे संस्थान मे पैसो की आमदनी भी बडी । उसी दौरान सुंदराबाई नाम की तरुण विधवा स्वामी की दासी बन गयी ।वो गणपत चोलप्पा बालप्पा ईनको आदेश देने लगी । तो स्वामी ऊसको कहते " ऐ रांड नौकरणी ये क्या तेरे घर के नौकर है ? "। स्वामी खाना खिलाना नहाना दर्शन के लिए तयार करना ये सभी काम वो करती ।ऊसने स्वामी को ऊठने को कहा तो वो उठते सोने को कहा तो सोते ।ईतनाही नही भक्त दर्शन के वक्त सुंदरा स्वामी को पत्नी कि तरह चिपककर बेठने लगी । संस्थान का अनगिनत पैसा सुंदराबाई हडप करने लगी ।तक्रार करने पर शिष्यो ने ऊसे जेल मे डाल दिया ।
स्वामी अवतार थे पर स्त्रिलंपट थे आखिर मामला पोलीसो तक पहूचना जरुरी था , स्वामी समर्थ के अवतारवाद पर प्रश्नचिन्ह खुद स्वामी ने ही लगाया ।ये अवतार न होकर पाखंड था ये सिद्ध हो चुका है ।
स्वामी की बखर मे 264 प्रकरण है वह सभी देणा शक्य नही । एक बार कर्वे नाम का ब्राम्हण स्वामी को मिलने आया कर्वे ईनकी जवान लडकी बिघड गयी थी । स्वामी ने कहा " होली किजिए " कर्वे को बडा ही धक्का पहूचा तो ऊनोने पुछा आपकी जाती कोनसी ? तो स्वामी ने जवाब दिया " यजुर्वेदी - ब्रामण, गोत्र- कश्यप , रास - मिन " (स्वामी समर्थ बखर पेज क्र 58 ) । ई स 1800 को स्वामी की मृत्यु हो गयी स्वामी तब वे सत्तर साल के थे । ई स 1800 मे चैत्र शुद्ध पुर्णीमा को ऊनका मृत्यु हूआ स्वामी की प्रेतयात्रा को हाती सचाये हुए घोडे तोफदार जरिपटका के पेशवे निषाण बारुदकाम करने वाले ऐसा माहौल था । स्वामी पर भरजरी पोशाख व अलंकार चढाए गये । स्वामि को आखिर मेँ सुगंधी पेटी मे बंद किया गया ऐसा बखर मे लिखा है .


परंतु 14 जनवरी 1761 को मैदान से भागे हुए सदाशिवराव का अंत हुआ था ।स्वामी मंगलवेढा मे रहते समय पेशवाऔ की तरफ से उनको मिलने वाला खर्चा कभी बंद नही किया गया स्वामी ने एक बार मालोजिराव के गाल पर थप्पड लगाई ऊसका कारण यही था कि सदाशिवराव ही स्वामी समर्थ थे । आगे यही प्रयोग तात्या टोपे और नानासाहब पेशवा के साथ किया गया । क्योकी ब्रामण मतिमंद पागल आदमी को स्वामी समर्थ बना सकते है तो सिर से पैरो तक ठिक ठाक दिखने वाले तात्या टोपे को गजानन महाराज और नानासाहब पेशवा को शिर्डी के साईबाबा क्यो नही बना सकते ?
" तात्या टोपे ही है गजानन महाराज "
1818 को भिमा कोरेगाव पेशवाओ की हार हुई ।भारत मे अंग्रेजो कि सत्ता प्रस्थापित हूई । अंग्रेजो के विरुध कयी लड़ाईया हुई उनमेसे 1857 की लड़ाई एक संगठित प्रयास था । परंतु तात्या टोपे, नानासहब पेशवा , लक्ष्मीबाई ईनके नेतृत्व मे किया गया यह प्रयास असफल साबित हुआ । हारने के बाद ये लोग भूमिगत हो गए । नानासाहब पेशवा तात्या टोपे रंगो बापुजी ये लोग साधु पंडीतो का भेस धारण कर भटक रहे थे ('रंगो बापुजी' लेखक-प्रबोधनकार ठाकरे-(शिवसेना के बाल ठाकरे के पिता), पान क्र 270) कई लोगो को फासी दि गयी पर परंतु ऊनके रिश्तेदारो ऊनकी लाश पहचान से ईनकार कर दिया । करीब एक साल पहले कि बात है दैनिक जागरण मे एक व्रुत्त प्रकाशीत हूआ है , तात्या टोपे को फासी दि गई पर वो कोई दुसरा ही था , ऐसी खबर है । लेखक ताम्हणकर का कहना है की तात्या टोपे का वर्णन शेगांव के गजानन महाराज से मिलता जुलता है ,शेगांव मे प्रकट होने वाले गजान महाराज तात्या टोपे ही है ऐसा उनका स्पष्ट कहना है ।साईबाबा और गजानन महाराज एकही वक्त मे होके गए । दोनो को चरित् मे दोनो की कभी मुलाकात होने की खबर नही मिलती ।परंतु जब गजानन महाराज का मृत्यु हुआ तो इधर साईबाबा ' मेरा गया रे ' कहकर दुःख व्यक्त कर रहे थे । असल मे ये लोग संत महापुरुष थे ही नही ब्रामणो ने बनाए हुए बेहरुपीये थे । सुख दुःख के भी आगे निकल चुके संतो से तो ये अपेक्षीत नही की वे अपना सेनापति मरने का दुःख जाहिर करे पर इसका दुःख नानासाहब को हुआ । ' सांईबाबा मतलब दुसरा नानासाहब पेशवा ' !
साई यह नाम इसा से लिया गया है ।
केसरी प्रकाशन ने प्रकाशित किया गया ' पेशवा घराणो का ईतिहास ' ईस किताब मे लेखक प्र ग ओक कहते है दुसरे बाजिराव ने 7 जुन 1827 को गोविंद माधवराव भट ईस लडके को गोद लिया । उसकी जनतारिख 6 दिसंबर 1824 ऐसी है । मतलब 1857 के युद्ध मे दुसरे नानासाह पेशवा 32 साल के थे ।
नानासाहब पेशवा को संस्कृत , पर्शियन(ईराणी) , ऊर्दू ईन भाषाओ का ज्ञान था । नानासाहब पेशवा हमेशा किनरवापी कुर्ता डालते । शिर्डी के साईबाबा का द्वारकामाई चावडी के पास का फोटो सबके परिचय की है ।
28 फरवरी 1856 को अंग्रेजो ने नानासाहब पेशवा को पकडने के लिए इनाम जाहिर किया था । रंग गेहुआ , बडी आंखे , छह फिट दो इंच लंबाई, सिधा नाक, साथ मे तुटे कान का नोकर ऐसा भेस जाहिर किया गया था । नानासाहब समझ कर दूसरे किसीको ही फासी दी गई थी । असल मे नानासाहब कबके फरार हो चुके थे । साई यह गांव मै जहा पे पढता हू ऊधर रायगड जिले (महाराष्ट्र) के चिरनेर के पास है । परंतु साई यह नाम ब्रामणो ने येशु ख्रिस्त के ईसा का उलटा लिया है ।
ब्रामण मतिमंद पागल सदाशिवराव को स्वामी बना सकते है तो नानासाहब पेशवा को शिर्डी का साईबाबा भि बना सकते है ।ईन स्वामी बाबा महाराजाओ को लोगो को गाली देने कि आदत थी । और स्वामी समर्थ और साईबाबा ईनकी काठी एक जैसी ही है । और काठि पर हात रखने का तरीका भी एक जैसा है यह विशेष।
ओर दुसरी विशेषता तो यह है की इनको कई तरह की गंदी आदते भी थी उनमे से एक गजानन महाराज की गांजा पिते हूए एक तसविर बहुत लोकप्रिय है ।अय्याशीयो से ही गांजा पीने की आदत लगती है ।
मुलनिवासी बहूजनो के संत मोह, माया, संपत्ती से दुर रहकर लोगो को जिने का मार्ग दिखाते । ' व्रत काया कल्पो से पुत्र होती, तो क्यो करने लागे पती ' । यह भावना विज्ञानवादी विचारधारा का ऊदाहरण है । चिलिमधारी गांजाधारी फोटो का मानसशास्त्रिय परिणाम छोटे बच्चो तथा समाज पर क्या होता होगा ?।वर्तमान मे जो काला पैसा कमाते है , भाईगिरी , चोरी खुन करके पैसा कमाते है , बडे बडे गुंडो के आश्रय से राजनिती मे आते है । 'चरीत्रहीन काम करके मै ही चरीत्रवान ' ईसलिए दर्शन के लिए बिना किसी लाईन मे लगके दर्शन के लिए ज्यादा का पैसा देकर शार्टकट दर्शन लेते है । अमिताभ बच्चन का दर्शन घोटाला तो बडा ही फेमस है । बाल ठाकरे ने भि साईबाबा को क्या क्या नही दिया था यह प्रकरण भि बडा ही फेमस हूआ था । काँग्रेस, राष्ट्रवादी , बिजेपी के नेताओ ने पुंजिपतियो ने कितना पैसा ईन मंदिरो को दिया ईसका कोई हिसाब है ? । यह राजस्व प्राप्त करने का नया तरीका है क्या ? भारत को आजादी मिलने के बाद संस्थानिको के संस्थान विलीन किए गए बदले मे उनको तनख्वा देने कि व्यवस्था कि गई कुछ दिनो बाद भारत सरकार ने तनख्वा बंद किया । ऊसके बाद संस्थाने राजापद इतिहासगत हो गई । परंतु आजादी के बाद अस्तित्व बनाए रखने वाली ब्रामणी व्यवस्था की संस्थाने गब्बर होती जा रही है । इन संस्थानो के आश्रय से अंदर बैठने वाले बुवा , बापु , बाप्या , स्वामी, दादा, नाना-महाराज, सद्गुरू इनकी कृपा से हमारे तुम्हारे प्रश्न चुटकी बजाते ही छुट जाएंगे ऐसा प्रचार यह ब्रामण और ऊनके दलाल हमेशा करते रहते है । धर्म , भक्ती, सेवा, श्रद्धा, अध्यात्म, ब्रामणी कर्मकांड ईनको आकर्षित होकर खुद ही ब्रामणी संस्थानो मे प्रवेश करते हैँ । नसिब पर विश्वास रखकर जिने लगते है । दैववादी बन जाते है । ब्रामणी कर्मकांडो के जाल मे फस चुके लोगो का कर्मवाद पर से विश्र्वास कम होते जाता है ओर वो ब्रामणो का मानसिक गुलाम बन जाता है। ईनमे अशिक्षित शिक्षितो के साथ अमिर गरीब सभि का जमाव रहता है ।
विशेषता तो यह है की मानसिक विकलांग लोग खुद को ब्रामणी व्यवस्था के गुलाम कभी नही समझते । ईसकी कल्पना तक नही करते ।

गुलामी की बेडीया तोडने का काम तो दुर ही ।ईन संस्थानो मे श्रद्धा के नाम पर लोगो से पैसा निकालने की योजनाए बनाई जाती है ।काकड आरती, महाआरती ,पालखी , ऊत्सव ,अभिषेक ,दर्शन ऊत्सव ,बेडिया, व्रत, मृतआत्माओ को खुश करना, चुटकी बजाते अमिर होना ,गुप्तधन, दिर्घायुष्य माला ,होम हवन ईन सब के द्वारा वो आपके जेब मे हात डालते हैं। इसतरह करोड़ो रुपयो का निधि रोज के रोज संस्थानो की दानपेटीयो मे झरने समान गिरते रहेगा ऐसी ब्रामणी षडयंत्रकारी योजना है । भारत के वित्तिय बजट से दस गुणा ज्यादा रकम मंदिरो मे हर साल जमा होती है, वो कहा जाती है । जहा पे भुखमरी से लोग मर जाते है , किसान आत्महत्या करते है , वही पे होम हवन करके लाखो रुपयो का दूध , दही , घी ,अनाज जलाया जाता है । यही इस देश की दुविधा है ।
जिन पेशवा ब्रामणो ने छत्रपति शिवाजी महाराज को जहर देकर मारा वही ब्रामण पेशवा अर्थात साईबाबा, गजानन महाराज, स्वामी समर्थ हमारे प्रेरणास्त्रोत कैसे हो सकते है ? जिन पेशवा ब्रामणो ने अछुतो के गले मे मटकी बाँधकर उनका थुकना तक पाप होता है ऐसा माना , उनके पैरो के निशान भी जमीन पर नही दिखने चाहिए इसके लिए उनके कमर को झाडु लगाया , ऐसे लोगो को हम अपना प्रेरणास्त्रोत कैसे मान सकते है ? फुले , शाहू , आंबेडकर ईनोने जो 108 साल जो क्रांतीकारी संघर्ष किया , जिससे गले की मटकी दूर होके उसके जगह टाई आ गई । शरीर पर कोट, सुट अच्छे कपड़े आ गए । पैरो मे जूते आ गए । जिन ब्रामणो ने ओबिसी को शुद्र कहा आज लोकतंत्र मे वही ब्रामण राजा बने हुए है ।
मुलनिवासी बहूजनो ने अपने महापुरूषो को प्रेरणास्थान मानना चाहीए । अपने बाप को ही बाप मानना चाहीए ।
पेशवा ये विदेशी युरेशियन ब्रामण है । वे अंग्रेजो से झगडते वक्त हार गए और भाग गए अंग्रेज पकड़ेंगे इस डर से ईन लोगो ने दूसरा मार्ग अपनाया वो मतलब साधु , स्वामी बनना । शिर्डी के साईबाबा - दुसरा नानासाहब पेशवा , स्वामी समर्थ -सदाशिवराव पेशवा , गजानन महाराज - तात्या टोपे ये सभी पेशवा ब्रामण है यह इतिहास से सिद्ध हो चुका है ।
इन संस्थानो के मेडिकल इंजिनिअरींग काँलेजेस है । यहा पे ब्रामणो के बच्चे पढते है और बाद पास होने के बाद इन विध्यार्थीयो से दो साल के लिए पुर्णकालिन कार्यकर्ता बनाकर काम करवाया जाता है ।आगे यही विध्यार्थी ब्रामणी व्यवस्था के कट्टर समर्थक कार्यकर्ता बनकर ब्रामणी व्यवस्था का मेंटेनन्स करने का काम करते है ।

यह लेख मराठी दै मुलनिवासी नायक मे आया हूआ है ।पाठको कि निरंतर मांग के कारण ईसे बार बार प्रकाशित किया गया ।दै मुलनिवासी नायक ने ईन तिनो ब्रामणो को नंगा किया तबसे कुछ महाराष्ट्र के ब्रामणी चँनलो ने अनैतिक टिवी सिरिअल्स शुरु कीये । महाराष्ट्र मेँ तो यह लेख गांव गांव मे पहूच चुका है । ईसिलिए पुरे देशभर के मुलनिवासी साथीयो को जाग्रत करने के लिए ईसका हिंदी अनुवाद किया हू । ईसको ध्यान मे रखते हूए सभि मुलनिवासी साथियो से विनती है की ईसे ज्यादा से ज्यादा मुलनिवासी साथियो के साथ शेअर करे और हो सके तो ईसकी प्रिँट निकाल कर लोगो मे ईसकी प्रतिया बाट सकते है । जल्द ही ईस पर मुलनिवासी पब्लिकेशन ट्रस्ट कि तरफ से एक शोध पुर्ण ग्रंथ प्रकाशित होने वाला है ।

Thursday, 11 July 2013

भारत में बम विस्फोट कौन करता है ? मुसलमान या ब्राह्मण

भारत में बम विस्फोट कौन करता है ? मुसलमान या ब्राह्मण 

1- मालेगाँव का बम विस्फोट-लेफ़्टिनेंट कर्नल श्रीकांत, साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर,
2- अजमेर दरगाह का बम विस्फोट-स्वामी असीमानंद , इंद्रेश कुमार (आरएसएस के वरिष्ठ नेता), देवेंद्र गुप्ता, साध्वी प्रज्ञा सिंह, सुनील जोशी, संदीप डांगे, रामचंद्र कलसांगरा उर्फ रामजी, शिवम धाक़ड, लोकेश शर्मा, समंदर , योगी आदित्यनाथ. 
3- मक्का मस्जिद का बम विस्फोट-स्वामी असीमानंद एन्ड कंपन
4- समझौता एक्सप्रेस का बम विस्फोट-स्वामी असीमानंद एन्ड कंपनी
5- नांदेड बम विस्फोट-संघ कार्यकर्ता राजकोंडवार तथा नकली दाड़ी और शेरवानी , कुरता , पायजामा भी बरामद
6- गोरखपुर का सिलसिलेवार बम विस्फोट- अज्ञात - आफ़ताब आलम अन्सारी है- गिरिफतार किया व ब ईज्जत रिहा
7- मुंबई ट्रेन बम विस्फोट - अज्ञात क्योंकि मुस्लिमों को फंसाया नहीं जा सका
7- घाटकोपर में बेस्ट की बस में हुए बम विस्फोट- अज्ञात क्योंकि मुस्लिमों को फंसाया नहीं जा सका .
8- वाराणसी बम विस्फोट-अज्ञात क्योंकि मुस्लिमों को फंसाया नहीं जा सका .
9- कानपुर बम विस्फोट-बजरंग दल कार्यकर्ता भूपेन्द्र सिंह छावड़ा और राजीव मिश्रा
10 पाकिस्तानी कसाब -जिम्मेदार भारत सरकार क्योंकि उसे 15 दिन पहले से जानकारी थी -कमिश्नर मुश्रीफ का बयान .

    अगर मुसलमान बंबविस्पोठ करते है , तो मस्जीत मे क्यू करते है। ओर बंब गिराने पर उस जगह दाढी टोपी क्यू डाल के जाते है । टोपी गिर जाती होंगी या बात ठीक है मगर दाढी … 

हमारे परभणी मे मस्जीत मे बंब गीराया गया था, पगले है मुसलमान उन्हे कोई ब्रह्मणो का मंदिर न मिला । 
नांदेड मी तो बंब बनते समय फुट गया उसमे २ ब्राह्मण मर गये ओर २ पकडे गये । उस जगह ओर क्या मिल पता है, टोपी ओर नकली दाढी के बक्क्षे । हाय रे इंडिअन मुजाहिद्दीन …. उसमे तो सारे कुलकर्णी ,पुरोहित , शुक्ला , गुप्त , जोशी , प्रज्ञासिंग वा । इंडियन मुजाहिद्दीन नाम का कोई संघटन भारत में है हि नही । जिसका न कोई संस्थापक , न कोई सदस्य ।
ये तो चालबाजी है ब्रह्मणो कि मुसलमानो के खिलाफ भडकाणे कि ।

Friday, 5 July 2013

जिनके पिछवाडे पे लात मारणी चाहिये उनके हम पैर छुते है,



कहा का रिवाज है जिसे जिते जी तन ढकनेको चीथडा न मिले उसे मरणे के बाद यक नाय कफ़न चाहिये । 
कहा का रिवाज है यह कि गरजू ,लाचार गरीब को लाथ मारके पथरो पे मत्था टेकणे को कहा जाता है । 
कहा कि संस्कृती है यह जहा गुलाम बनानेवाले , पुरा घर लूटकर ले जाने वाले के दक्षणा देकर पैर छुये जाते है। अरे  जिनके पिछवाडे पे लात  मारणी चाहिये उनके हम पैर छुते है,
कोनसा धर्म है यह जो असमानता ,गैरबराबरी , भेदभाव , उचनीचता शिखाता है । 
जो धर्म ग्रंथ अश्लील गलीया देते है , नारी को केवळ पिटणे के लायक मानते है । 
उसे हम बडे मजे से सर पे लेके उत्सव मना रहे है । कोई नही झाकणा चाहता ग्रन्थो के अंदर । ओर कोई झाकणे भी नाही देगा क्युकी सच्चाई बहार आ जयगी । बडे मजे से नोटंकी चाल रही है धर्मपुरोहित ,पंडो कि , गुलाम बना के नचा रहे है औरतोंको , पैसे मागकर लुट रहे है अदमियो को । बस चल  रहा है  बरसो से यह खेल ।  कोई तटस्थ खडा है, तो कोई लुटणेवालो साथ दे रहा है । चुप्पी छाके सत्य  ने मॊन धारण कर लिया है , खाली दोचार हि अपनी रट लगाये जाते है हर युग मे , हर शतक हर दशक मे । इनमे 
कोई शिव होता है तो कोई बुद्ध ,
कोई महावीर होता है तो कोई गुरुनानक ,
कोई मसीहा येशु तो कोई पैगंबर साहेब । यहा गुनाह १ क हि कि सत्य नही बोलना , सत्य बोलोगे तो सजा मिलेगी 

सत्य बोलणेवालो को इस विश्व मे  क्या मिला 
येशु के हात पैरो मे किले  ठोक ठोक के मार दिया धर्म के ठेकेदारो ने .
छ संभाजी महाराज कि आखे निकालदी ,  धर्मग्रंथ क्यू पढे इन आखो से  इसलिय  ,
उंगलिया , नाखून क्यू लगाये ब्रह्मणो के रद्दी ग्रन्थो को इसलिये नाखून निकाल के उंगलिया काट  दि गई युराज शंभूराजा कि । 
 उच्चारण किया संकृत श्लोकोका तो निकाल जी गयी जिव्हा उनकी मुह्से ।   
फिर भी यहा के  देशी गुलाम चूप ओर विदेशी शैतान मजे मे नाच रहे है सतसांगो मे । 
इतना हि नही संत रविदास, संत कबीर , गुरु गोविंद सिंग  कि हत्त्या कि गयी ब्रह्मणो के द्वारा ,
संत नामदेव से लेकर संत तुकोबाराय  तक सारे संतो कि हत्त्या कि गई ,
बोद्ध भिक्कुओ के करोडो सर काट  दिये गये , पुष्यमित्र नाम के ब्राह्मण ने । 
औरतो को तक नाही छोडा इन हरमियो ने ।  संत मीराबाई को जहर देके कृष्ण मंदिर मी मार दिया …सन्त जनाबाई को सुली पे लटका दिया । क्या अब भी नही जागना चाहते मेरे भाईओ ,
अभी नाही तो फिर कभी नही कभी नही ।  

Friday, 28 June 2013

धर्म के नाम पे पशुहत्त्या कोण करते है ?...

  मित्रो ब्राम्हणो के द्वारा हमेशा ही प्रचार किया गया है कि जीव हत्या पाप है। जीवो पर दया करनी चाहिए...इनकावध नही करना चाहिए तथा जीव हत्या के विषय पर मुसलमानो का हमेशा ही विरोध करते हैँ। परंतु मामला जीव हत्या का नहीं है... बल्कि मामला पिछड़ी जातियों को मुसलमानों से लड़ाने का है, ब्राह्मण जात जानवरों के वध के मुद्दे पर पिछड़ी जातियों को मुसलमानों से लड़ाना चाहते है... जानवरो की बली को तो खुद ब्राह्मणों ने शुभ कार्य के रूप में अपने धर्म की किताबो में डालकर रखा हुआ है। जिसे ब्राह्मण हजारो सालो से शुभ मानते थे तथा देवी देवताओ के सामने बली देते आ रहे है। फिर आज अचानक जीव हत्या पाप कैसे हो गया...
ये ब्राम्हणो कि धूर्तता का अतिउत्तम उदाहरण है। स्वँय जानवरो का वध करते है तो वो देवी-देवताओ को प्रसन्न करने का साधन बन जाता है यदि कोई दुसरा करता है तो वो निर्दयी, क्रुर, हिंसक प्रवत्ति का मनुष्य बन जाता है।  उन्होने हजारो सालो सें यग्य मे करोडो गाय ,भैस , बैल कि बळी चढाई । ओर आज भी धर्म के नाम पे पाखंडी ब्राह्मण गो मांस खाते है ।  वेदो मे मधुपर्क नाम का शब्द आता है जिसका अर्थ होता है गाय के मांस का गुलाबजामून … जिसे ब्राह्मण यग्य के समय घी मे ताल के खाते थे ।
वाह रे...पाखंडीयो तेरि और तेरे भगवान कि लीला अपरमपार है। जिसे समझना मुश्किल हि नही नामुमकिन है।

Friday, 14 June 2013

हिंदी चित्रपटांतून ब्राम्हणी व्यावेस्थेला काय संदेश द्यायचा आहे .?


भारतीय मेडिया हा  ब्राह्मणांच्या ताब्यात असल्यामुळे ते सतत या मेडीयाचा गैर वापर करून क्रमिक असमानता प्रस्थापित  करत असतात . मेडीयाचा वापर आजकाल भांडणे लावण्यासाठी राजरोसपणे केला जातो . 

हिंदी चित्रपटांचेही अगदी असेच वृत्त -वैक्कले , बुवाबाजीचा प्रचार हिंदी चित्रपट सतत करत आहेत ."कार्वाचोत का व्रत " हा तर ठरलेला सीन . बायकोने दिवसभर बिना  अन्न पाण्याचे उपासी राहायचे आणि रात्री नवर्याचे चाळणीत तोंड पहायचे . हा सन आमचा आहे का ?  बरे बायकांनीच उपासी राहायचे का ? नवर्यानी का नको ? हा तर मनुस्मृतीचा नियम झाला . 
हिंदी चित्रपटातील लग्न तर भटांशीवाय लागतच नाही ? काय लग्नाच्या दुसर्या पद्धती उपलब्ध नाहीत  काय ? आणि  सिरीयालीत तर घरात भले मोठे देवघर दाखवले जाते आणि त्यात घनटा  घनटा  सामुहिक पूजा दाखवली जाते . हिरो हरला ,थकला कि मग मंदिरात जातो आणि देवाला शिव्या घालतो मग देव त्याला  प्रसन्न होतो . हा दैववादीपण आजच्या विज्ञान युगात तरुणांना शिकवून हा देश ब्राम्हणांना कुणीकडे घेवून जायचा आहे . 
विलन ,खलनायक महटले कि दाढी ,टोपीवाला मुसलमान आलाच , विलन म्हनुन नेहमी मुस्लिमांची नवे बदनाम केली गेली . कधी ब्राह्मण विलन म्हणुन दाखवला गेला का?
पण कमिशनर ,police इन्स्पेक्टर महटले कि मग पांडे , चतुर्वेदी , गुप्ता ,शुक्ला , कुलकर्णी हि सगळी ब्राह्मण मंडळी , आणि कमिशनर ,police इन्स्पेक्टरच्या हाताखाली  काम करणारे हवालदार म्हटले कि मग जाधव , कांबळे , सावंत असली नावे . हे सगळे  नाटक आमचे लोक पैसे देवून बघतात . मराठी चित्रपटांतून पाटील बदनाम केला गेला . निळूफुले आणि पाटील हे ठरलेले समीकरण त्यात बलात्कार आलाच . 
कॉलेज जीवनावर जेव्हा चित्रपट येतो तेव्हा त्यातील हेरो हा मोकार टूक्कार  बाहेर फिरणारा दाखवला जातो . त्याला मग एखादी प्रेमिका मिळणारच मग सुरु कॉलेज  आणि शिक्षणाचा कचरा . 
म्हणजे आमच्या तरुणांनी देखील असेच वागावे .  बोटावर वही फिरवत कोण्या तरी पोट्टीच्या मागे लागायचे असल्या प्रकारामुळे कितीतरी आमची तरुण मुले मार खावून , शिक्षणाला हात धुवून घरी बसली . 
बंदूक , चाकू असले हत्त्यारे  नेहमी वापरताना हिरो दाखवला जातो . पोरानो तुम्हीपण असेच करा . कायदा मोडा … पुलीसांचे ठरलेलेच आहे ते उशीरच येणार सर्व झाल्यावर. कायदा , पुलीस हे काही न्याय देवू शकत नाहीत मग हिरो कायदा हातात घेतो . कोर्टात जज ला शिव्या देवून न्यायदेवतेचा अपमान करतो वगेरे वगेरे …   हे पण चित्रपटांतून नेहिमी दाखवले गेले . कायदा बदनाम केला गेला .  आम्ही गप्पच . ब्राम्हणांची चित्रपट बघण्यात  गुंग। 

Tuesday, 11 June 2013

परवा परवा मुंबईमध्ये बी .जे .पी . काँग्रेसची दंगल झाली



परवा परवा मुंबईमध्ये बी .जे .पी . काँग्रेसची दंगल झाली, का झाली, कशासाठी झाली, कारणं परंपरा हा भाग वेगळा,... पण त्या दंगलीचा फायदा उठ्वून, एका काँग्रेसच्या मोहल्ल्यामध्ये काहि गुंड होते आणि त्याच काँग्रेसच्या मोहल्ल्यामध्ये एन पंचविशितली एक लावण्यखणी सोनिया नावाची युवती होती. देखणी,.... आरसपणी.. बस बघावं आणि बघतच रहावं इतकी लावण्यखणी, या गुंडांचा तिच्यावर डोळा होता, दंगलीच्या कल्लोळाचा फायदा उठ्वावा आणि त्या युवतीची आब्रु लुटावी......असा बेत त्यांनी आखला आणि दंगल एन जोमात असतानाच ,रात्रिच्या बारा साडे बारा वाजता काळोख चिरत हे सगळे त्या युवतीच्या घराच्या दिशेने सरकू लागले..........
बघता बघता दरवाजावर धड्का पडू लागल्या , आतली ती बावरली..... शहारली........घाबरली,
खिडकितुन बघितलं.... गुंड दिसले... इरादा ध्यानी आला तसे जिवाच्या आकांताने धावत सुटली.
मुंबईच्या रस्त्यावरुन रात्रिच्या बारा साडे बारा वाजता बेभानपणे पळतेय. गुंड पाठलागावर आहेत, तिला कळून चुकलं....या गुंडांच्या तावडीत जर सापडलो तर आपल्या आब्रुची लक्तरे ईथे रस्त्यावरच टांगली जातील,म्हणून बेभान पळतेय जिवाच्या आकांताने काळोख चिरत धावतेय.....धावता....धावता एका बोळात
शिरली बोळातल्या एका घरात तीला उजेड दिसला धपापत्या उरानं दारापुढं आली.... दार ठोठावलं दार उघडलं गेलं.....दारात उभा होता एक एन तिशीतला एक बी .जे .पी .चा हिंदु युवक नाव अटलजी .
दारात सोनिया पाहीली त्याला आश्चर्य वाटले. बाहेर दंगल चाललीय बी .जे .पी . काँग्रेसची. हि कॉंग्रेस ची मग या बी .जे .पी .च्या दारापुढं कशी?.....
त्याने विचारले "काय हवयं?"
ती युवती सोनिया म्हणाली " काही बी.जे.पी. चे गुंड माझ्या पाठलागावर आहेत, एका रात्री पुरता मला आसरा मिळेल का? माझी आब्रु लुटायचा बेत आहे त्यांचा."
हा युवक म्हटला "निश्चिंत आत ये घर तुझच आहे" तिला आत घेतलं, स्वतःच अंथरुण्-पांघरुन दिलं आणि सांगितलं "शांत झोप इथ तुला कसलीही भिती नाहि, मी स्वता: दाराशी राखण करीत राहतो रात्रभर.. ते गुंड परत येणार नाहित तुला त्रास दयायला."
ती युवती युवती झोपी गेली, हा दाराशी राखण करीत बसला, पण राखण करता करता डोक्यात विचार आला.... बाहेर दंगल चाललीय बी .जे .पी . काँग्रेसची हि मुलगी सोनिया कॉंग्रेस ची मी अटलजी बी .जे.पी. चा . मग या बीजेपी च्या घरात तिने आसरा मगितलाच कसा?.....तिला भिती नाही का वाटली?..... आणि ते गुंड तिची आब्रु लुटाण्यासाठी तिच्या मागावर आहेत..... मि ही घरात एकटाच आहे, मी हि तरुण आहे,
मनात आणलं तर ...आता... याक्षणी....इथच... या युवतीची आब्रु मि लुटु शकतो, हिला माझ्या तावडीतून वाचवणारं देखिल कोणी नाही......मग कुठ्ल्या भरवशावर ती माझ्या घरात निश्चिंत पणे थांबलीय?
रात्रभर विचार केला उत्तर मिळलं नाहि..... सकाळ झाली ति युवती जायला निघाली जाताना तिनं आभार मानले.........पण न रहावून याने विचारले
"बाहेर दंगल चाललीय बी .जे .पी . काँग्रेसची तू कॉंग्रेसची मी बीजेपी चा मग माझ्या घरात आसरा कसा मगितलास ? ते गुंड तूझी आब्रु लुटाण्यासाठी तूझ्या मागावर होते...पण मि ही घरात एकटाच होतो........ मी हि तरुण होतो...........मनात आणलं तर रातोरात तुझी आब्रु मि लुटु शकलो आसतो........तूला माझ्या तावडीतून वाचवणारं देखिल कोणी नव्हतं ......मग कुठ्ल्या भरवशावर ती माझ्या घरात थांबलीस?
त्यावर ती युवती म्हणाली "त्या गुंडांच्या तावडीतून सुटण्यासाठी मी बेभानपणे धावत होती. मुंबईच्या रस्त्यावरुन सैरावैरा पळत होते.......धावता....धावता या बोळात शिरली बोळातल्या तुझ्या घरात मला उजेड दिसला धपापत्या उरानं मी दारापुढं आले.... पण दार ठोठवायच्या अगोदर तुझ्या घराच्या उघड्या खिडकीतून मि आत डोकावुन पाहिलं तर तुझ्या घराच्या भिंतीवर मला.......असमर्थ रामदासाचा फोटो दिसला.........आणि मगच मी दार ठोठावलं................
कारण मला माहिती आहे,... ज्या घरात असमर्थ रामदासाचा फोटो आहे त्या घरात कुणाच्याही आब्रुला धोका नाही.....कारण रामदास छक्का होता ...तो लग्न मंडपातून पाळला होता .

पाहिलतं गेल्या साडे तिनशे वर्षा नंतरही पळपुट्या रामदासा बद्द्ल जनमाणसांमध्ये जी प्रतिमा आहे...ती हिच प्रतिमा आहे
रामदास स्मरणात आहेत ते फक्त एव्हढ्यासाठी.........

Sunday, 2 June 2013

आपली न्याय व्यवस्थाच मुळी अन्याय व्यवस्था आहे .

शिक्षेमुळे कोणतीहि व्यक्ती परिवर्तित झाली नाही.  ऽनि होत हि नाही . उलट होतं काय तर तुरुंग म्हणजे गुन्ह्याची विद्यापीठे होवून बसतात .नवशिके , हौशी गुन्हेगार बाहेर येताना अट्टल ,निडर गुन्हेगार म्हणून बाहेर पडतात . जणूकाही ते पदवी घेवून बाहेर पडलेत . दिलेल्या शिक्षेमुळे त्यांना अनुभवी ,बिनचुक्या गुन्हेगारांचा सहवास लाभतो . आणि मग ते ट्रेन गुन्हेगार म्हनून बाहेर येतात . आणि मग आत शिकलेले फंडे वापरायला लागतात . 
तुरुंगात सुम्पूर्ण वातावरण एकाच गोस्ट  सांगत असते कि चोरी करणे , खून करणे ,बलात्कार , हा काही गुन्हा नव्हे , आपण पकडले जाने हा गुन्हा आहे . तेव्हा पकडले न जाता गुन्हा कसा  शिताफीने कारायचा ते शिकून घ्या . 
आपली सगळी न्याय व्यवस्थाच  मुळी अन्याय  व्यवस्था  आहे . शिक्षा देवून लोकांना सुधारायची कल्पनाच मुळी विचार करायला लावणारी आहे . खरे म्हणजे गुन्हेगारांना इस्पितळात ठेवण्याची गरज आहे . त्यांना मानसोपचार तज्ञाकडे नेले पाहिजे  नाही तर  नैतिक शिक्षण दिले पाहिजे. करुना  दाखवून उपचार केला पाहिजे . शिक्षा म्हणजे त्याच्यावर सूड उगवणे ,त्याच्यावर हि परिस्थिती  का आली हे जाणून घेणे नव्हे . 
ह्या देश्यात केवळ टाटा ,बाटा अंबानी यांसारख्या केवळ पंधरा व्यक्ती श्रीमंत आहेत . हेच खरे दरोडेखोर ,गुन्हेगार आहेत . कुत्र्यांना a .c . आहे यांच्या कडे ,१ १ कोटीचे बंगले . हजारो एक्कर जमिनी यांच्याकडे . हे तर घटना विरोधी आहे . पण कुठे आहे 
न्याय व्यवस्था . गरिबांना ५ २ एक्कर पेक्षा जास्त जमीन बाळगता यात नाही , शेतीला वीज नाही , गरिबांना न्याय नाही ….

Tuesday, 21 May 2013

मनुस्मृती,ज्ञानेश्वरी आणि दासबोध या मध्ये काय फरक आहे का?


मनुस्मृती, न्याणेश्वरी, दासबोध या मध्ये काय फरक आहे का?

ऋग्वेदामध्ये जे श्लोक आहेत. तेच पुरुषसुक्तामध्य
े आहेत. पुरुषसुक्तामध्ये जे श्लोक आहेत तेच मनुस्मृती मध्ये आहेत. मनुस्मृती मध्ये जे श्लोक आहेत तेच न्याणेश्वरी मध्ये आहेत. न्याणेश्वरीमध्ये जे श्लोक आहेत तेच दासबोधा मध्ये आहेत. याचा अर्थ ब्राम्हणांनी आजवर त्यांचे वर्चस्व टिकवून ठेवण्याचा प्रयत्न केलेला दिसून येतो. वरील तिन्हीही ग्रंथाचे ब्राम्हण रचियते सुमती भार्गव, न्याणेश्वर, रामदास हे जातीवादी आणि चातुर्वण्य मानणारे वळ वळणारे जंत होते. ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्रांनी कोणते काम केले पाहीजे? हे ज्याप्रमाणे मनुस्मृतीने सांगितले आहे तेच पुढे न्याणेश्वर भटानी सांगितले आहे. आणि या दोहोँचाही वारसा पुढे रामदासाने नेटाने चालविलेला आहे. म्हणून या तिघांनीही कसे त्याकाळातील परिस्थीती, वेळ, काळ पाहून कसे विषारी फुत्कार सोडले आहेत किँवा सगळे बामण कसे एकाच माळीचे मणी असतात हे पुढीलप्रमाणे कसे सिध्द केले आहे ते थोडक्यात पहा...

1) मनुस्मृती

"सर्वस्यास्य तु सर्गस्य गुप्त्यर्थँ स महाद्युति:।
मुखबाहूरुपज्जानां पृथक्कर्माण्यकल्पयत्" (1:87)
"अध्यापनमध्ययनं यजनं याजनं तथा ।
दानं प्रतिग्रहं चैव ब्राम्हणानामकल्पयत्" (1:88)
"प्रजानां रक्षणं दानमिज्याध्ययनमेव च।
विषयेष्वप्रसक्तिश्च क्षत्रियस्य समासत: (1:89)
"पशूनां रक्षणं दानमिज्याध्ययनमेव च।
वाणिक्पथं कुसीदं च वैश्यस्य कृषिमेव च" (1:90)
"एकमेव तु शुद्रस्य प्रभु: कर्म समादिशत् ।
एतेषामेव वर्णानां शुशुषामनसूयया" (1:91)

वरील श्लोकामध्ये ब्रम्हदेवाने गर्भवती राहीला असून त्यानेच चार वर्ण आपल्या शरिराच्या विशिष्ट भागामधून अर्थात मुखातून ब्राम्हण, बाहुतून क्षत्रिय, मांडीतून वैश्य आणि पायातून शुद्र असे वर्ण निर्माण करुन त्यांना त्यांच्या कामाचेही मनुस्मृतीच्या वरील श्लोकातून वाटप करण्यात आले जसे कि शिक्षण घेणे, विद्यार्जन करणे, दान घेणे अशा प्रकारची प्रमुख आयत्या बिळात नागोबासारखे आरामदायी कामे ब्राम्हणांनी त्यांच्याकडे घेवून प्रजेचे रक्षण करणे, दान धर्म ही क्षत्रियांनी करावयाची कामे तर जनावरे पाळने, व्यापार, सावकारी ही वैश्याची कामे तर शुद्रांनी या तिन्ही वर्णाची सेवा करणे अशा प्रकारच्या कामाची वाटप मनु ने केलेली आहे वरील श्लोकामधून ब्राम्हणांनी ज्या अर्थी स्वताकडे श्रेष्टत्व ठेवले त्या अर्थी ही शेँडीधारी मंडळी नक्कीच नीच होती हे सिध्द होते आणि ज्या अर्थी ईतर वर्ण व सर्वात जास्त शुद्र हिणवले गेले त्या अर्थी ही जात नक्कीच महान होती श्रेष्ट होती हे सिध्द होते. मनुस्मृतीचे काम वाटपसंदर्भात दिलेले मत झाल्यानंतर आता न्याणेश्वरीचा रचियता ज्ञानेश्वर  कसा जातीवादी आहे. तो मनुस्मृतीमध्ये जी चातुर्वण्यपध्दत मानली गेली आहे किँवा कोणत्या वर्णाने काय कार्य केले पाहीजे हे थोडक्यात पुढील प्रमाणे पहा...

2) ज्ञानेश्वरी
"तेचि चारी वर्ण । पुससी जरी कोण कोण ।
तरी जयां मुख्य ब्राम्हण धुरेचे कां" (818)
"येर क्षत्रिय वैश्य दोन्ही । तेही ब्राम्हणाच्याचि मानिजे मानी ।
जे ते वैदिकाविधानी । योग्य म्हणौनि" (819)
"चौथा शूद्रु, जो धनंजया । वेदी लागू नाही तया
तह्री वृत्ति वर्णत्रया अधिन तयाची" (820)
"आणि वैश्य क्षत्रिय ब्राम्हण। हे द्विजन्मे तिन्ही वर्ण ययांचे जे शुश्रूषण। ते शुद्रकर्म" (18:883)
"पै द्विजसेवेपरौतेँ। धावणे नाही शुद्रातेँ ।
एवं चतीर्वर्णोचितेँ । दाविली कर्मे॥" (18:884)
"तैसे वर्णाश्रमवशेँ । जे करणीय असे ।
गोरेया आंगा जैसे । गोरेपण" (18:887)
"हे विहित कर्मपांडवा । आपुला अनन्य ओलावा ।
आणि हेचि परमसेवा मज सर्वात्मकाची" (18:906)
"अगा जया जे विहित । ते ईश्वराचे मनोगत ।
म्हणौनि केलिय निभ्रांत । सापडेचि तो" (18:911)
"तुम्हा वर्णविशेषवशे । आम्ही हा स्वधर्मुचि विहिला असे ।
याते उपासा मग आपैसे । पुरती काम" (3:88)
"म्हणौनि स्वधर्मु जो सांडील । तयाने काळु दंडील
चोरु म्हणौनि हरील । सर्वस्व तयाचे" (3:112
   ज्ञानेश्वरी च्या वरील श्लोकावरुन ज्ञानेश्वर  भट हा किती जातियवादी मानसिकतेचा होता हे सिध्द होते. ज्याप्रमाणे मनुस्मृती ब्राम्हण सोडून इतर वर्णीयांनी कोणती कामे केली पाहीजेत हे सांगते तेच न्यानेश्वर कुलकर्णी ने त्याच्या न्यानेश्वरीमधून सांगितलेले आहे.  ज्ञानेश्वर भट हा फक्त ब्राम्हणांनाच श्रेष्ट समजत होता तर ईतर वर्णाँना निच समजत होता हे त्याने वरती दिलेल्या श्लोकातून सिध्द होते. वरील वर्णांनी कोणताही दुजाभाव न करता ब्राम्हणांची सेवा केली पाहीजे असे ज्ञानेश्वर   कुलकर्णी ठासून सांगतो. पुढे तो ब्राम्हणाची सेवा हीच ईश्वराची सेवा आहे असे ज्ञानेश्वर सांगतो. मग इथे प्रश्न हा निर्माण होतो कि ब्राम्हणाची सेवा हीच ईश्वराची सेवा आहे असे या भटाला का सांगायचे आहे? बरे बामणांचीच सेवा करणे असा काही नियम आहे कधी तरी शुद्रांची ही सेवा केली पाहीजे असे या कुलकर्णीला वाटत नाही का? याचाच अर्थ ज्ञानेश्वर हा त्याकाळातील शुद्र व आताचे एससी, एसटी, ओबीसी, मराठा यांना बामणांची सेवा करण्यासाठी देवाची भिती घालतो. यावरुनच न्याणेश्वरी आणि त्याचा रचियता जाणवेधारी  ज्ञानेश्वर कुलकर्णी हा किती जातीयवादी भट होता हे सिध्द होते. सुमती भार्गव लिखीत मनुस्मृती, ज्ञानेश्वर  कुलकर्णी लिखित न्याणेश्वरी झाल्यानंतर आता रामदास लिखीत दासबोध हा ग्रंथ ही जातीवाद आणि चातुर्वण्य पध्दत मानतो ते पुढीलप्रमाणे थोडक्यात पहा...

3) दासबोध

"नीच प्राणी गुरुत्व पावला । तेथे आचारचि बुडाला ।
वेदशास्र ब्राम्हणाला । कोण पुसे" (दासबोध 14. 7)
"ब्रम्हग्यानाचा विचारु । त्याचा ब्राम्हणापासीच अधिकारु ।
'वर्णानां ब्राम्हणो गुरु:' ऐसे वचन।
गुरुत्व आले नीचयानी । काही एक वाढली महंती
शुद्र आचार बुडविती । ब्राम्हणांचा ।
गुरु तो सकळांसी ब्राम्हण । जह्री तो झाला क्रियाहीन ।
तरी तयासीच शरण । अनन्यभावे असावे ।
सकळासि पुज्य ब्राम्हण । हे मुख्य वेदण्या प्रमाण ।
वेदविरहिते ते अप्रमाण । ते अप्रिये भगवंता ।
ब्राम्हण वेद मुर्तीमंत । ब्राम्हण तोचि भगवंत
पुर्ण होती मनोरथ । विप्रवाक्ये करुनि ।"
(दासबोध 5-1,6,10,12)
"अंत्यज शब्दग्याता बरवा । परी तो नेऊन काये करावा
ब्राम्हणासन्निध पुजावा । हे तो न घडे की"
(दासबोध 5,1,16)

पाहिलत हे न्याणेश्वरानी आणि रामदासानी कसा मनुस्मृतीचाच वारसा हक्क पुढे नेहला आहे. रामदास हा वेद सांगतील ते प्रमाण मानतो. त्यानेही वरील श्लोकामध्ये ब्राम्हणांना ईश्वर संबोधून त्याची सेवा शुद्रानी केली पाहीजे असा अट्टाहास धरतो. म्हणून मला तरी वरील तिन्हीही ग्रंथामध्ये कोणताही फरक दिसत नसून हे तिन्ही ग्रंथ सारखेच जातीयवादी होते हे सिध्द होते. अशा ग्रंथाचे पारायण नव्हे तर दहन मात्र झाले पाहीजे या मताचा मी आहे.
तसेच मनुस्मृतीचा, न्याणेश्वरीचा, दासबोधाचा अट्टाहास धरणाय्रा या तिन्हीही ब्राम्हण लिखित ग्रंथाचा डंका पिटणाय्रा त्या ब्राम्हणवाद्यांना माझे काही प्रश्न आहेत ते पुढीलप्रमाणे पहा...

1) मनुस्मृती मध्ये काही श्लोक चांगले आहेत असे बोलणाय्रांनी बाबासाहेबांनी मनुस्मृती का जाळली याचे उत्तर द्यावे?
2) लहान वयात अर्थात पंधरा सोळाव्या वर्षी ज्ञानेश्वर  कुलकर्णी ने ज्ञानेश्वरी लिहून खुप चांगले कार्य केले आहे असे तोँड वासून बोलणाय्रांना शिवपुत्र युवराज छत्रपती संभाजी महाराजांनी वयाच्या चौदाव्या वर्षी चार ग्रंथ नखशिखा, नायिकाभेद, सातसतक, बुधभुषण नावाचे चार ग्रंथ लिहले ते तुम्हा लोकांना दिसत नाहीत का?
3) दासबोध आणि त्याचा रचियता शिवद्रोही रामदास याची वाह वाह करणाय्रा तमाम भटांना संत तुकाराम महाराजांची गाथा त्यांनी लिहलेली रचना दिसत नाहीत का?
द्या उत्तरे भटांनो?
- लेखक - निरंजन लांडगे...

Friday, 17 May 2013

खरच हिंदू (ब्राह्मण )धर्म गर्व करण्याच्या लायकीचा आहे काय ?



 स्वामी दयानंद सरस्वती म्हणतात "हिंदू हि मोगलांनी दिलेली  शिवी आहे . हि म्हणजे हीन आणि दु म्हणजे दुय्यम म्हणजेच शुद्र ,तुछ्य ,गुलाम ,जिंकून घेतलेले होय ." म्हणूनच दयानंद सरस्वती यांनी आर्य समाजाची स्थापना केली . हिंदू समाजाची नव्हे . असे असेल तर गर्व काय गुलामीचा करयचा ?


१ )एकेकाळी स्त्रियांच्या डोक्यावरील केस भादरून त्यांना बोडखे जीवन जगाय लावणारा हिंदू धर्म . एवढेच काय तर स्त्रियांना जिवंत जाळून ढोल तासे बडवत मंत्र म्हणनार्या ब्राह्मणांचा हिंदू धर्म खरच गर्वाची बाब आहे काय ?

२) वर्ण व्यवस्था ,जाती व्यवस्था निर्माण करून असमानता दर्शक वागणूक देणारा . माणसामाणसात भेद निर्माण करणारा . धर्म खरच मनापासून गर्व करण्याच्या लायकीचा आहे काय ?
 ३) हिंदू धर्म एवढा ग्रेट होता तर मग संतांनी वेगळे धर्म का काढले ज़से कि महात्मा बसवेश्वर यांनी लिंगायत , संत चक्रधर स्वामी यांनी महानुभाव (परधर्म ) तर संत नामदेव यांनी भागवत (वारकरी ) धर्म का काढला ?
४) आत्तापर्यंत ब्राह्मणांच्या मुलांचा  हजेरीपटावरील  धर्माचा रकाना रिकामा का असायचा ? धर्म म्हणून "ब्राह्मणधर्म" हा शब्दप्रयोग ब्राह्मण आत्तापर्यंत का करत आलेत ?
५)शिवरायांचा राज्याभिषेक सोहळा नाकारणे असो कि किवा तुकोबांचा गाथा 
पाण्यात बुडवणे असो . हिंदू धर्म असे कसे करू शकतो ?
६)मानुस्म्रती हा हिंदू धर्माचा कायदे ग्रंथ . ज्याने शूद्राला कुठलेही हक्क अधिकार दिले नाहीत पण शिक्ष्या मात्र भयानक दिल्या
जसे कि संस्कृत चा अभ्यास का केला म्हणून छ संभाजी महाराजांची हत्त्या या ग्रंथा प्रमाणे करण्यात आली . संत चोखोबा हे जातीने महार पण लोकांना शहाणे करत आहेत म्हणून त्यांच्या अंगावर वेस ढकलून त्यांची हत्त्या करण्यात आली . एवढेच नव्हे तर संत रविदास यांची हत्त्या चीत्तोदगडावर चर्म कापण्याच्या हत्त्याराने करण्यात आली ग़ोरा कुंभाराचे हात तोडण्यात आले . जनाबाई ला सुळार देण्यात आले . मीराबाई ला कृष्ण मंदिरात विष पाजून मारले गेले .सन्त नामदेव यांच्या समवेत घरच्या १४ जणांना पाण्यात बुडवून मारण्यात आले . कबीरांच्या देहाची म्हणे फुले झाली . हि सगळी कारस्थाने हिंदू धर्म प्रमुख भटजींचे . काय समस्या होती ब्राह्मनांची?
 ७ ) बरे या धर्माचा ठोस धर्म ग्रंथ कोणता? मुख्य देव कोणता? धर्म प्रमुख कोणता ?

अजून किती तरी पुरावे देता येतील . आमच्या  महापुरुषांना संपवणारा धर्म आमचा कसा ?

Monday, 6 May 2013

ख्रिश्चन धर्मात्तील एक स्त्री ..

ख्रिश्चन धर्मात्तील एक स्त्री चर्च मध्ये गेली आणि आपल्या पापांची कबुली देवु लागली
ती म्हणाली
" हे प्रभू मी कालच्या सोमवारी एका राजकारण्यापासी झोपले मला माफ कर "
चर्च मधील समोरचे लोक म्हणाले येशु तुला माफ करेल
ती स्त्री परत म्हणाली
" हे प्रभू मंगळवारी मी एका चित्रपटाच्या नायकासोबत रात्र घालवली ,मी पाप केले मला माफ कर "
समोरील लोकांनी होकारार्थी माना डोलावल्या
ती परत म्हणाली
" हे प्रभू बुधवारी मी ए
का व्यापार्या सोबत ,गुरुवारी एका दुकानदारासोबत ,शुक्रवारी एका गुंडा सोबत ,आणि शनिवारी एका कॉलेज तरुणासोबत रात्र गालावली मला माफ कर "
लोकांनी माना डोलावून देव तुला माफ करेल अशी सम्मती दिली

आणि पुढे ती स्त्री म्हणाली

" आणि आज मी ठरवूनच आले आहे कि प्रभू प्रायश्चित्त म्हणून आजची रात्र मी तुझ्यासोबत घालवणार "

मागे एक पिलेला दारुड्या होता तो म्हणाला

" घालाव रात्र ,तुला सवयच आहे रोज कोनापाशीतरी रात्र घालवायची ,आज प्रभूपाशी नीज ,आज प्रायश्चित्त घे म्हणजे उद्यापासून मोकळी
पाप करायला ,परत पुढच्या आठवड्यात ये चर्च मध्ये "

असले खोटे धर्मच मुळी पाप वाढवाय कारणीभूत ठरतात

Friday, 18 January 2013

लिंगानुपात (स्त्री ब्र्हून हत्त्या ) ओर बलात्कार कि जड

लिंगानुपात (स्त्री ब्र्हून हत्त्या ) ओर बलात्कार कि जड :
 हाली  में मेडिया में जो लिंगानुपात (स्त्री ब्र्हून हत्त्या ) ओर बलात्कार का धिंडोरा पिटा  जा राहा है ,उसमे यक बात जानबुझकर छुपाई जा राही है .
बात यह है की, क्या है जड़ इस समस्या की ,क्यू निर्माण हुई यह समस्या .मीडिया हमेशा समस्या पर चर्चा करता है ,लेकिन असलियत और समस्या के कारन छुपता है .
क्या यह समस्या अमरीका ,जापान, चीन इन देशो में है .
नहीं यह समस्या विश्व में कही भी नहीं है ,सिर्फ भारत में और उसमे भी केवल हिंदुओ में .
क्यू ?
इस देश में ब्राम्हणों ने धर्मग्रन्थ लिखे और उसमे स्त्रियों को निचा दिखाया .यही जड़ है इस समस्या की तुलसीदास रामायण में कहेते है "ढोल गावर शुद्र पशु नारी ,यह सब है तडन के अधिकारी "
ढोल गावर शुद्र पशु  सब पीटने के लायक होते है,उसमे तुलसीदास स्त्री भी  का समावेश करते है ,मेरा 1 सवाल है की सीता ही पेटी में क्यू मिली ,राम क्यू नहीं मिला ,क्यू की लिखनेवाले ब्राम्हणों ने  स्त्रियोको निचा दिखने का बेडा जो उठाया था .इसलिए सीता पेटी में मिली .
मनुस्मृति कहती है की " न स्त्री स्वातंत्र्य मर्हति "
यानि स्त्रियों को स्वातंत्र्य नहीं देना चाहिये  .
इसकी परिणिति यह हुई की बच्ची पैदा होते ही उसको लोग  दूध में डुबोने लगे .मार  र्देने लगे .
बेटी पैदा होना पाप माना  जाने लगा . और अब लडकिय कम होने के कारन बलात्कार भी शुरू हुए . और जिनकी संकृति के रचेता ही बलात्कारी हो उस संस्कृति में तो बलात्कार होंगे ही .जी मै  ब्रह्मा के बारे में बोल रहा हु। दुनिया का सबसे पहेला बलात्कारी ब्रह्मा के शिवाय कोई हो सकता है क्या ?

जिसने खुद कि बेटी सरस्वती पे बलात्कार किया . ब्रह्मणो कि संस्कृती 

हि ऐसी है
 .
इसलिये लिंगानुपात (स्त्री ब्र्हून हत्त्या ) ओर बलात्कार कि जड 




ब्राह्मणी धर्मग्रंथ हि है .उसका क्या करना है ओ अप शोचो 

नितीन सावंत

परभणी
 —





Monday, 7 January 2013

पांडू बलकवडे चे दादू कोंडू कुलकर्णी सारखे पाय कापले पाहिजेत


 आम्ही संभाजी ब्रिगेड च्या माध्यमातून मराठी (कि ब्राह्मणी ) साहित्य संम्मेलनातील अत्त्यंत चुकीच्या अश्या बाबीवर जेव्हा बोट ठेवले तेव्हा
बलकवडे नावाच्या अत्त्यंत देशद्रोही माणसाने शिवरायांचा संबंध परशुरामाशी जोडून बहुजन समाजाचा अपमान केला .
साहित्य संम्मेलनात पर्शुरामाचे समर्थन करणाऱ्या काही चेंले चपाट्याना आमचे काही प्रश्न आहेत .
१ ) परशुरामाचे  साहित्यातील योगदान काय ?
      त्याच्या नावावर किती साहित्य आहे?
२) त्याने बहुजन समाजासाठी किती आणि काय काय कार्य केले .म्हणजे त्याचे सामिजिक कार्य काय ?
३)त्याचे या देश्याच्या नवनिर्मितीत काय योगदान आहे . त्याने या देश्याच्या राष्ट्र कार्यात कोणते मोठे विधायक कार्य केले .
४) परशुरामाची कुर्हाड हे कश्याचे प्रतिक आहे . ते आम्ही मिरवले पाहिजे काय?
५) साहित्य  संम्मेलनाच्या पत्रिकेवर परशुरामाची कुर्हाड दाखवून ब्राह्माणांना काय संदेश द्यायचा आहे .त्यांचे तसे काही भविष्यातील plyan  आहेत काय.?
६) भांडणे करू नका ,हिंसा करू नका असा संदेश देणारा तुम्हाला बुद्ध हवा आहे कि खुले आम बहुजनांच्या कत्तली करणारा , स्त्रीयांच्या गर्भातील बालके मारणारा परशुराम तुम्हाला हवा आहे ?
७) आधी ३ भावांचा आणि नंतर स्वतः च्या जन्मदात्र्या आईचा खून करणारे हे  पर्शुरामी  व्यक्तिमत्व काय साहित्य संम्मेलनाच्या पत्रिकेत मिरवण्याच्या योग्यतेचे आहे काय ?
८)परशुराम हा काय  बहुजन समाजाचा प्रेरणा पुरुष हवू शकतो काय ?
१०) एवढे आपल्यासाठी पुरेसे आहे .सरकारने असल्या भटि  साहित्य  संम्मेलनाला अज्जिबात पैशे देवूनायेत आणि आमच्यावर पुन्हा भांडारकर करण्याची वेळही अनु नये .
              आणि बलकवडेचे दादू सारखे पाय वगॆरे गेल्यास आम्ही जबाबदार राहणार नाहीत .
नितीन सावंत
प्रवक्ता संभाजी ब्रिगेड
परभणी