Friday, 5 July 2013

जिनके पिछवाडे पे लात मारणी चाहिये उनके हम पैर छुते है,



कहा का रिवाज है जिसे जिते जी तन ढकनेको चीथडा न मिले उसे मरणे के बाद यक नाय कफ़न चाहिये । 
कहा का रिवाज है यह कि गरजू ,लाचार गरीब को लाथ मारके पथरो पे मत्था टेकणे को कहा जाता है । 
कहा कि संस्कृती है यह जहा गुलाम बनानेवाले , पुरा घर लूटकर ले जाने वाले के दक्षणा देकर पैर छुये जाते है। अरे  जिनके पिछवाडे पे लात  मारणी चाहिये उनके हम पैर छुते है,
कोनसा धर्म है यह जो असमानता ,गैरबराबरी , भेदभाव , उचनीचता शिखाता है । 
जो धर्म ग्रंथ अश्लील गलीया देते है , नारी को केवळ पिटणे के लायक मानते है । 
उसे हम बडे मजे से सर पे लेके उत्सव मना रहे है । कोई नही झाकणा चाहता ग्रन्थो के अंदर । ओर कोई झाकणे भी नाही देगा क्युकी सच्चाई बहार आ जयगी । बडे मजे से नोटंकी चाल रही है धर्मपुरोहित ,पंडो कि , गुलाम बना के नचा रहे है औरतोंको , पैसे मागकर लुट रहे है अदमियो को । बस चल  रहा है  बरसो से यह खेल ।  कोई तटस्थ खडा है, तो कोई लुटणेवालो साथ दे रहा है । चुप्पी छाके सत्य  ने मॊन धारण कर लिया है , खाली दोचार हि अपनी रट लगाये जाते है हर युग मे , हर शतक हर दशक मे । इनमे 
कोई शिव होता है तो कोई बुद्ध ,
कोई महावीर होता है तो कोई गुरुनानक ,
कोई मसीहा येशु तो कोई पैगंबर साहेब । यहा गुनाह १ क हि कि सत्य नही बोलना , सत्य बोलोगे तो सजा मिलेगी 

सत्य बोलणेवालो को इस विश्व मे  क्या मिला 
येशु के हात पैरो मे किले  ठोक ठोक के मार दिया धर्म के ठेकेदारो ने .
छ संभाजी महाराज कि आखे निकालदी ,  धर्मग्रंथ क्यू पढे इन आखो से  इसलिय  ,
उंगलिया , नाखून क्यू लगाये ब्रह्मणो के रद्दी ग्रन्थो को इसलिये नाखून निकाल के उंगलिया काट  दि गई युराज शंभूराजा कि । 
 उच्चारण किया संकृत श्लोकोका तो निकाल जी गयी जिव्हा उनकी मुह्से ।   
फिर भी यहा के  देशी गुलाम चूप ओर विदेशी शैतान मजे मे नाच रहे है सतसांगो मे । 
इतना हि नही संत रविदास, संत कबीर , गुरु गोविंद सिंग  कि हत्त्या कि गयी ब्रह्मणो के द्वारा ,
संत नामदेव से लेकर संत तुकोबाराय  तक सारे संतो कि हत्त्या कि गई ,
बोद्ध भिक्कुओ के करोडो सर काट  दिये गये , पुष्यमित्र नाम के ब्राह्मण ने । 
औरतो को तक नाही छोडा इन हरमियो ने ।  संत मीराबाई को जहर देके कृष्ण मंदिर मी मार दिया …सन्त जनाबाई को सुली पे लटका दिया । क्या अब भी नही जागना चाहते मेरे भाईओ ,
अभी नाही तो फिर कभी नही कभी नही ।  

1 comment:

  1. जितकी जितकी तुमचे ब्लोग वाचतो आहे तेवढे तेवढे मला आत्ता पटत चालले आहे कि तुमचे मानसिक संतुलन बिगडलेले आहे तुम्ही ब्राह्मणद्वेषाने वेडसर बनत चालले आहात परभणीला एखाद्या मानसोपचार करण्यारा डॉक्टरला धाख्वा एक वर्षभर ब्राह्मण हा शब्दच उच्चांरु नका आणि मनातही आणू नका तर बरे होण्याची काहीतरी शक्यता आहे

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